सूरज निकाल देता है | Ghazal Suraj Nikal Deta Hai
सूरज निकाल देता है
( Suraj Nikal Deta Hai )
बड़ी अजीब सी उलझन में डाल देता है
मेरे सवाल को हँस हँस के टाल देता है
हुनर को अपने वो ऐसा कमाल देता है
नदी का दर्द समुंदर में डाल देता है
करो न फ़िक्र कि हम भी उसी के बंदे हैं
बड़ा रहीम है वो सब को पाल देता है
उसी की आज ख़ुशामद मैं कर के देखूँगा
वो बिगड़ी बात सुना है संभाल देता है
यक़ीं है घर का अंधेरा वो दूर कर देगा
कभी जो चाँद या सूरज निकाल देता है
जो सर झुका के कहा था किसी की आँखों ने
वो एक जुमला ही अब तक मलाल देता है
हरेक शख़्स नज़र आये मुत्मइन मुझ से
कहाँ ख़ुदा ये किसी को कमाल देता है
मेरी ग़ज़ल में झलकती है उसको अपनी ग़ज़ल
ज़माना इसलिए मेरी मिसाल देता है
मेरी ग़ज़ल तो है तुझ पर ही मुन्हसिर सागर
तेरा ख़याल भी कितने ख़याल देता है
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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