जिक्र होता रहा सियासत का
जिक्र होता रहा सियासत का
जिक्र होता रहा सियासत का
औ दिखावा किया हिफ़ाजत का
दिल मे पाले रहे सदा नफरत
और बहाना किया सदाकत का
जुल्म पर जुल्म की बरसात हुई
ढोंग चलता रहा सलामत का
पास तो बैठे थे वो पहलू में
जज्बा पाले हुए अदावत का
मेरे ही संग उनकी साँसे भी
कैसा माहौल है लताफ़त का
बोलते प्यार से तो है हमसे
फिर भी एहसास है बग़ावत का
झूठी कसमें जरूर खानी थी
काम जो कर सके कयामत का
रह चुप काम सारे करते रहे
पहने चेहरा किसी शराफत का
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र