लड़कियों की जिंदगी
लड़कियों की जिंदगी बहुत मार्मिक,संघर्षशील,सहनशीलता से भरी होती है। इतने ही नहीं धैर्य और ममता भी अंदर कूट-कूट कर निहित कुछ एक दो अपवाद स्वरूप है। अपवाद की तो बात ही जुदा गुलाब में भी कांटे होते हैं।
लड़कियों में हर दु:ख-दर्द पीड़ा को सहने की अपूर्व क्षमता रहती है। हर असहनीय पीड़ा को हंसते-हंसते सह लेती । बच्चों को जन्म देना, संभालना कोई साधारण बात नहीं है। कम धीरज की जरूरत नहीं पड़ती उसमें।
सोचिए तो जिंदगी में उसे कुछ नहीं हासिल। जन्म लेती है परी सा घर-आंगन की शोभा बढ़ाती। मम्मी-पापा की मदद में लगी ही नहीं रहती वरण दया भाव रहता सदैव।
उसे समझ ही नहीं जिस को अपना मान रही है वह कल बेगाना हो जाएगा। इस घर में ममता प्यार लुटाने के बाद थोड़ा-थोड़ा होश संभालती, मां की आंचल की छाया से बाहर जागृत अवस्था में,आंख खुली तो अपने आप को दूसरे घर की आंगन में। कितना मुश्किल काम है दूसरे के घर में जगह बनाना।
मां की आंचल की छांव से निकाल कर तुरंत समन्वय स्थापित करना जहां अनेक तरह की पड़तड़ना, बातों की बौछार भर भर के, जबकि उनकी कोई गलती नहीं रहती है। वैसे वातावरण में भी अडिग रहती लड़कियां ।
फिर एक दहेज की विकट समस्या सामने ,बहुत सोच लड़कियों को देना पड़ता दहेज इसलिए पढ़ाई में कम खर्च। क्योंकि शादी तो करना ही पड़ता है हर हाल में। भविष्य बनाने से ज्यादा शादी आ जाती सामने।जिससे होनहार लड़कियों की भविष्य अधर में लटक जाती है।
दहेज में कुछ कम रकम,बात करके नहीं पूरा पाते माता-पिता वह भी झेलना पड़ता लड़कियों को ही जिंदगी भर! इसी में प्यार रोमांस सब जाते कहीं खो। एक दो तो इतना लोभी डालते जा झोली में फिर भी संतोष नहीं,पेट नहीं भरता है। लड़कियां कहां सुखी जबकि जन्म दात्री है।
लड़कियों को सुख कहां पूरा जीवन तो पति घर संभालने में शहीद ।कहां तक लिखूं ,लिखने का शब्द नहीं मेरे पास ।अब तो कुछ-कुछ लचीला हुआ है । पति थोड़ा उत्तम मिलता है तो जगह स्थाई तौर पर कायम।
जिंदगी चलती ठीक-ठीक से नहीं तो अपार विषम परिस्थितियों का करना पड़ता है सामना कभी-कभी तो जान भी जोखिम में, यदि पड़ जाते खराब परिवार के संगत में, जीना हो जाती उसकी मुश्किल से भरी सारे सपने जाते बिखर रह जाती धारा की धारा मन मस्तिष्क में,जीवन हो जाता संघर्षमय सारी लड़ाई खुद लड़ना पड़ता है।
क्योंकि हमारा समाज भी दुर्गुणों से भरा है। दु:खद परिस्थितियों में लड़कियों के देते नहीं साथ,उल्टे ताना-बाना घर बसाने की रहती है पड़ी, माता-पिता जी भी बन जाते कठोर ,आ जाती सामाजिक मान सम्मान में कमी । इसके लिए लड़कियां घुट-घुट,रो-रो कर आहे भरती जीवन भर। मां का घर तो शादी के बाद हाथ से चल ही जाते हैं।
पति सही नहीं रहने पर पति का घर अपना नहीं ।सारे काम करने के बाद नए-नए ढंग की इल्जाम लगाकर लड़कियों को घर से बाहर । “यही है लड़की की जिंदगानी। ” स्व भरण पोषण है लड़कियां तो कल्याण नहीं। परिवार का अच्छे से साथ नहीं। अनेक तरह का ताना-बाना घर परिवार का सुनाने आए दिन जीवन में मिलता है।
कभी पति चलने लगते हैं उल्टा घर बाहर करने की बावजूद भी। कभी सास ससुर ठीक से काम नहीं हुआ। कभी जेठ-जेठानी,दीवर-देवरानी जी पैसा आएगी तो काम,आएगी तो अपने लिए घर का भी काम पूरा का पूरा करो।
जब बड़े-बड़े काम पड़े तो दीजिए पैसा। अब थके पड़े हैं इसका कोई अर्थ नहीं उन सबकी जिंदगी में, यही लड़कियों की हाल है। संस्कारी रहने से तो और तबाही है सबको देखते-देखते थक लेकिन दूसरों को कोई शिकन तक नहीं।
भानुप्रिया देवी
बाबा बैजनाथ धाम देवघर