हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है | Sad Shayari
हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है
( Haan khayi jeest mein thokar bahut hai )
हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है
जिग़र पे इसलिए नश्तर बहुत है
मुहब्बत का अपनें ने कब दिया गुल
नफ़रत के ही मारे पत्थर बहुत है !
किसी को प्यार क्या देगे भला वो
मुहब्बत की जमीं बंजर बहुत है
मिले मंजर नहीं मुझको ख़ुशी के
ग़मों के ही देखे मंजर बहुत है
नहीं दी पेट भर रोठी अपनों ने
किया है काम भी दिन भर बहुत है
नहीं अच्छी सीरत है उसकी दिल से
सूरत से वो लेकिन सुंदर बहुत है
नज़ाकत जो दिखाएगा “आज़म” को
नगर में वरना देखो दर बहुत है