हाथ में वरना मेरे ख़ंजर नहीं
हाथ में वरना मेरे ख़ंजर नहीं
हाथ में वरना मेरे ख़ंजर नहीं!
दुश्मनों के छोड़ता मैं सर नहीं
कट रही है जिंदगी फुटफाट पे
मासूमों पे सोने को बिस्तर नहीं
लौट आया शहर से मैं गांव फ़िर
ढूंढ़ता से भी मिला वो घर नहीं
सिर्फ़ आता मंजर नफ़रत का नजर
प्यार का ही दूर तक मंजर नहीं
जुल्म अपनों के ऐसे उतरे दिल में
सूखते दिल के मेरे नश्तर नहीं
तोड़ देता नफ़रतों के शीशा मैं
हाथ में आज़म वरना पत्थर नहीं
️
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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