है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा
है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा
है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा।
गुलशन में खुश वही है जो समझ गया इशारा।।
पत्थर पे मैंहदी पिसती अग्नि में तपता सोना।
दुःखों को सहन करके जीवन सभी निखारा।।
हम डूब जायें बेशक तकते नहीं सहारा।
है खुद पे भरोसा तो पास है किनारा।।
हमको नहीं किसी भी इमदाद की है ज़रूरत।
आंसू भी खुद अपने दामन भी है हमारा।।
दिल टूटने की तुम भी तङफन भला क्या जानो।
पत्थर उछालना तो “कुमार” शोंक तुम्हारा।।
❄️
कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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