हालात-ए-बयां | Halat-e-Bayaan
हालात-ए-बयां
( Halat-e-Bayaan )
कोई मेरा अपना बेगाना हो गया।
पल में मेरा प्यार फसाना हो गया।
करता था मैं भी मोहब्बत की बातें,
अब उन बातों को जमाना हो गया!
तुमसे दूर रहना कातिलाना हो गया,
गुम हुए होश दिल दीवाना हो गया।
हँसा देता हूँ मैं लोगों को इक पल में,
मुझे मुस्कुराए हुए ज़माना हो गया।
शिकवा नहीं है फिर भी किसी से,
खुशी दे के दर्द कमाना हो गया।
किया था प्यार जिसे जान से ज़्यादा,
वो प्यार आज मेरा फ़साना हो गया।
लेटा हूँ मखमली बिस्तर पे लेकिन,
काँटों की सेज पे सुस्ताना हो गया।
कोई मरहम भर नहीं सकता ज़ख्म मेरे,
घाव यह जो मेरा इतना पुराना हो गया।
डर नहीं लगता सुमित अब मरने से,
मौत से जो अब मेरा याराना हो गया।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )