हरियाणा दिवस के मौके पर हरियाणवी लोक संस्कृति एवं साहित्य उत्सव कार्यक्रम मनाया गया
हरियाणा दिवस के मौके पर हिन्दी विभाग व भाषा एवं कला संकाय के अधीन चल रहे कोर्स की संयुक्त तत्वावधान ओर से हरियाणवी लोक संस्कृति एवं साहित्य उत्सव कार्यक्रम मनाया गया। कार्यक्रम का मंचसंचालन कुमारी प्रिया ने किया |
हरियाणवी कवि श्री कृष्ण आत्रेय जी ने कहा हरियाणवी कविता का कला-पक्ष भी भाव-पक्ष की भांति उत्कृष्ट है | हरियाणवी कवियों ने हरियाणा प्रदेश की लोक-भाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है |
हरियाणवी कविता में मुख्यतः हरियाणवी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें तत्सम तथा तद्भव शब्दों के साथ-साथ देशी-विदेशी शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है | मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा आकर्षक, स्वाभाविक तथा प्रभावोत्पादक बन गई है | भाषा प्रसाद गुण संपन्न है |
अत: अधिकांशत: अभिधामूलक शब्दावली का प्रयोग किया गया है | लेकिन विषयानुकूल लक्षणा तथा व्यंजना शब्द-शक्तियों का प्रयोग भी किया गया है | जहाँ तक शैली का प्रश्न है, आधुनिक हरियाणवी कवियों ने वर्णनात्मक, संबोधन, प्रतीकात्मक, आत्मकथात्मक, विवरणात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है |
गीतकार सूरज उज्जैनी ने कहा कि जब यह निश्चित हो गया कि युद्ध तो होगा ही, तो दोनों पक्षों ने युद्ध के लिए तैयारियाँ शुरू कर दीं। दुर्योधन पिछ्ले १३ वर्षों से ही युद्ध की तैयारी कर रहा था, उसने बलराम जी से गदा युद्ध की शिक्षा प्राप्त की तथा कठिन परिश्रम और अभ्यास से गदा युद्ध करने में भीम से भी अच्छा हो गया।
शकुनि ने इन वर्षों मे की विश्व के अधिकतर जनपदों को अपनी तरफ कर लिया। दुर्योधन कर्ण को अपनी सेना का सेनापति बनाना चाहता था परन्तु शकुनि के समझाने पर दुर्योधन ने पितामह भीष्म को अपनी सेना का सेनापति बनाया, जिसके कारण भारत और विश्व के कई जनपद दुर्योधन के पक्ष मे हो गये।
पाण्डवों की तरफ केवल वही जनपद थे जो धर्म और श्रीकृष्ण के पक्ष मे थे। महाभारत के अनुसार महाभारत काल में कुरुराज्य विश्व का सबसे बड़ा और शक्तिशाली जनपद था।
पंजाबी के प्राध्यापक कुलदीप सिंह ने कहा कि हरियाणा की संस्कृति उसके लोकगीत को प्रतिबिंबित करती है। वैदिक काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में डूबा हुआ, हरियाणा का रहस्यमय राज्य भीड़ से अलग दिखता है।
समृद्ध हरियाणवी संस्कृति की विशेषता हुक्के और चारपाई, जीवंत मेले और लहलहाते धान के खेत हैं; हरियाणा भारत के सबसे धनी राज्यों में से एक है और दक्षिण एशिया में सबसे अधिक आर्थिक रूप से विकसित क्षेत्रों में से एक है। ‘देवताओं के घर’ के नाम से लोकप्रिय इस जीवंत राज्य में एक समृद्ध संस्कृति, विरासत, त्यौहार, लोककथाएँ और एक जीवंत परिदृश्य है।
उर्दू भाषा के प्राध्यापक मनजीत सिंह ने कहा कि हरियाणा की बोली, जो हरियाणवी, बंगारू या जाटू के नाम से प्रसिद्ध है; यह थोड़ा कच्चा माना जाता है लेकिन यह ज़मीनी हास्य और स्पष्टता से भरपूर है। हरियाणा के अधिकांश लोगों की सामाजिक स्थिति कमोबेश समान है।
उम्र का कारक वास्तव में हरियाणा में एक प्रमुख विशेषता है, अधिष्ठात्री भाषा एवं कला संकाय व अध्यक्ष हिंदी विभाग डा पुष्पा रानी ने कहा कि सभी बुजुर्गों, चाहे अमीर हों या गरीब, के साथ अत्यंत सम्मान और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार, यह अत्यंत समाजवादी प्रकृति को प्रदर्शित करता है।
राज्य के कुछ हिस्सों में, किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उसके पास मौजूद मवेशियों की संख्या से भी निर्धारित होती है! यहां के लोग एक ही गोत्र में विवाह की अनुमति न देकर अपनी जातीय शुद्धता बनाए रखते हैं। विधवा पुनर्विवाह को भी प्रोत्साहित नहीं किया जाता है और इसलिए यह समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा दायित्व है।
अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डा राकेश कुमार सूदन ने कहा कि हरियाणा में प्राचीन काल से ही नवजात शिशु के आगमन पर देसी घी में बने ‘गूंद के लड्डू’ बनाकर बांटने की परंपरा रही है। इसी तरह, ‘चूरमा’ की भी एक श्रृंखला है जो विशिष्ट अवसरों पर परोसी जाती है।
कुछ अन्य पारंपरिक व्यंजनों में बथुआ रायता के साथ परांठे, कढ़ी, खिचड़ी, कड़ाही हरा छोलिया के साथ उबले चावल और बेसन मसाला रोटी और बाजरा आलू की रोटी जैसी कुछ अलग प्रकार की रोटियां शामिल हैं।
अनुवाद विभाग से प्राध्यापक डा रश्मि प्रभा ने कहा कि भारत के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, हरियाणा में भी नृत्य और संगीत का अपना पारंपरिक रूप है जो दुनिया भर के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।
प्रसिद्ध पारंपरिक नृत्य रूपों में शामिल हैं- घूमर, गणगौर और खोरिया नृत्य। हरियाणा का प्राचीन लोक संगीत मुख्यतः दो प्रकार का है- शास्त्रीय और देहाती। शास्त्रीय रूप महान किंवदंतियों से संबंधित है जबकि ग्रामीण संगीत में विभिन्न रागों वाले गीत शामिल हैं, जो हिंदुस्तानी शैली में गाए जाते हैं।
इन रागों में पहाड़ी शैली, काफ़ी, भैरवी और मल्हार शैली का संगीत शामिल है। इसके अलावा, गायन और नृत्य उत्सवों के दौरान विभिन्न प्रकार के संगीत वाद्ययंत्र जैसे ढोलक, ड्रम, मटका, हारमोनियम, डमरू, शहनाई, मंजीरा और नगाड़ा के साथ-साथ खंजरी, सारंगी, ताशा और घुंगुरु आदि बजाए जाते हैं।
इस मौके पर हिन्दी विभाग से डा जसबीर सिंह, बीरबल, नितीन,सागर, सहित सैकड़ों विद्यार्थी मौजूद थे ।
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