राष्ट्रभाषा हिंदी!

( Rashtrabhasha Hindi ) 

 

एक सूत्र में देश जो बाँधे,
वो हिंदी कहलाती है।
जन -जन के अंतर्मन में जो,
प्यार का अलख जगाती है।

पढ़ना-लिखना इसमें सरल है,
जल्दी समझ में आती है।
जन- जन की भाषा है हिंदी,
तभी तो सभी को भाती है।

गौरवमयी इतिहास है इसका,
क्रांति का बिगुल बजाई थी।
कितने चढ़ गए फांसी के फन्दे,
आजादी दिलवाई थी।

केशव, भूषण, पंत, निराला,
रस कितना बरसाए हैं।
समरसता का तिलक लगाकर,
चंदा – सा चमकाए हैं।

कालजयी भाषा है हिंदी,
ये माथे की बिंदी है।
आन हमारी, शान हमारी,
मेरी माँ जैसे जिन्दी है।

रोजी-रोटी का जरिया बनकर,
विश्व में देखो छाई है।
गागर में सागर ये भरती,
महिमा दुनिया गाई है।

दूरी मिटाती, मेल कराती,
ऐसी ये फुलवारी है।
विश्व – मंच पऱ मेरी हिंदी,
लगती सबको प्यारी है।

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

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