होली में तेरी याद
होली में तेरी याद
गुलाल भी फीका, अबीर भी रूठा है,
तेरे बिना हर रंग जैसे टूटा है।
भीड़ में हूँ पर तन्हा खड़ा हूँ,
तेरी हंसी के बिना हर मौसम सूखा है।
जहां एहसासों के रंगों से तेरा चेहरा सजाता था,
आज वही हाथ कांप सा जाता है।
तेरी हँसी की गूंज कहाँ खो गई दिकु,
अब तो हर खुशी का पल भी मुझे दर्द देकर सताता है।
होली का हर रंग तेरा नाम पुकारे,
आ जा दिकु, ये दिल तुझको निहारे।
इंतज़ार की आग में जल रहा हूँ,
तेरे बिना मैं अधूरा सा पल रहा हूँ।

कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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