होली ने आकर कर डाला | Ghazal
होली ने आकर कर डाला
( Holi ne aakar kar dala )
होली ने आकर कर डाला,सब कुछ गड़बड़ घोटाला है !
चेहरों के अंदर का चेहरा, धो-धो कर नया निकाला है !!
जो गले मिला आकर उसने, कर डाला खूब हरा नीला
यदिअधिकप्यारउमड़ातोफिर,करदियापकड़मुंहकालाहै !!
घर के पीछे कीगलियों से,छुप-छुपकर भागोगे कितना
जिससे संरक्षण मांग रहे, रंग वही डालने वाला है !!
यह रंग-गुलालों का मौसम, मजबूती भी बतलाता है
दमदारों के घर खुले हुए, कमजोरों के घर ताला है !!
घुट रही भ॔ग, चढ़ रहा रंग,हर जगह नई हुड़दंग मची
हंस रहा आज वह शख्स ,हमेशा का जो रोने वाला है !!
हैं शैख – बिरहमन एक रंग, लड़वाने वाले हुए दंग
यह दौर रहे तो झगड़ों का, क्यों ना निकले दीवाला है !!
नेताजी बन कर आया है ,यह कौन मदारी का बंदर
पहचान नहीं आता लेकिन, लगता कुछ देखा-भाला है !!
जो रंग लिये आया उस पर,उसके ही रंग को डाल दिया
ऐसे शातिर लोगों का तो,होली ही सिर्फ हवाला है !!
सब समझदार बन गये मूर्ख, उल्लू-गदहे सम्मानित हैं
भाई जी ताऊ लगते हैं , लड़का लगता चौटाला है !!
उत्तर में उत्तर के रंग हैं , दक्षिण में दक्षिण की होली
“आकाश” आज इस धरती को, रंगीन बनाने वाला है !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )
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