Ashk nahi Khoon
Ashk nahi Khoon

अश्क नहीं खून

( Ashk nahi khoon ) 

 

आँखों से खून तभी बहा करते हैं
जब इनसे अश्क बहना बंद कर देते हैं

जख्म देने वाले कोई दुश्मन होता नहीं
बल्कि वो कोई अपना ही रहा करते हैं

ये सिर्फ अपने खुशी के लिए घर नहीं
बल्कि पुरा संसार ही जला दिया करते हैं

उसे हम अपना अपना कहते थकते नहीं
और वो मौत के मुँह मे ढकेल दिया करते हैं

पत्थर किसी महलों को तोड़ा करते नहीं
इसे उछालने वाले कोई अपना ही होते हैं

आँखों से जब अश्क बहा करते नहीं
आँखों से अश्क के बदले खून तभी बहा करते हैं

 

रचनाकार रूपक कुमार

भागलपुर ( बिहार )

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