
शहर में बढ़ते हुक्का बार
( Shahar mein badhte hookah bar )
थोड़ा समझो मेरे यार शहर में बढ़ते हुक्का बार।
नशे ने घेर लिया है सबको डूबते जा रहे परिवार।
तंबाकू तबाही का घर तोड़ दो सारे बीयर बार।
बिगड़े बच्चे आचार बचाओ संस्कृति संस्कार।
रगों में उतर रहा है जहर सांसो में जीना दूभर है।
पीर का सागर गहरा है मदहोशी संकट का घर है।
नशे ने कुछ नहीं छोड़ा भाग्य कितनों का फोड़ा।
नचाए इक कांच की बोतल शर्म करो भाई थोड़ा।
धुयें में उड़ा रहे सांसे चंद सांसों का खेल है।
बिगड़े जब हालत सारी सब कोशिशें फेल है।
तौबा करो नशे से जिंदगी मस्त जियो मेरे यार।
कोशिश करो बंद हो जाए शहर में हुक्का बार।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )