मन एक परिंदा है | Poem man ek parinda hai
मन एक परिंदा है
( Man ek parinda hai )
ये मन एक परिंदा है उड़ाने ऊंची भरता।
स्वप्न लोक विचरण सकल विश्व करता।
मन के नयन हजार मन जाए सरिता के पार।
पंखों को व्योम पसार घूमे सपनों का संसार।
कभी झूमता कभी नाचता मतवाला सा गाता।
पंछी मनवा सैर सपाटा दूर तलक कर जाता।
कभी हिलोरे लेता जी भर खुलकर वो मुस्काता।
प्रेम तराने अंतर्मन के ले भाव विभोर हो जाता।
कभी पुष्प सा महकता खिलते हुए चमन सा।
हरी भरी हरियाली में मन छुए छोर गगन का।
इठलाता बलखाता मनवा अपनी मौज मनाता।
बंदिशों की तोड़ बेड़ियां स्वच्छंद घूमता जाता।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )