दर्द ए दास्तां | Hunkar ki dard -e- dastan
दर्द – ए – दास्तां
( Dard -e- dastan )
1. दर्द – ए – दास्तां
दर्द ए दास्तां लिख करके भी, दर्द बता ना पाया मैं।
वो उलझा था अपने ग़म में, अपना कहाँ दिखाया मैं।
दुनियादारी में उलझा वो, मेरा मन उलझा उसमे,
बालसखा सी दर्द हमारी,दूर ना उससे जा पाया मैं।
2. तेरा तू जानें
तेरा तू जानें हम अपने, मन की बात करेगें।
नींद निशाचर से होकर के,रातों को जगते है।
इसीलिए आँखें भर्राई, सुस्ती छाई रहती है,
रात को नींद नही आती हम, रातों को जगते है।
3. कई चेहरे
एक मास्क से क्या होगा, जिसके की कई चेहरे है।
कोरोना भी कुछ ना करेगा, ये मन से ढीठ बडे है।
कोई टीका दवा कोई भी, लेकर ठीक नही होते,
हर चेहरे पर नया मास्क है, भोले से दिखते है।
4. कागज
कागज में रम करके ही मैं, खुशियां ढूंढ लेता हूँ।
जब मन बैचैन मेरा होता है, तब कुछ लिख देता हूँ।
किससे मन की बात कहे, सब अपने ग़म मे डूबें है,
नैन समुन्दर कश्ति बन, कागज पे ही गढ देता हूँ।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )