जागते रहो | Jagte Raho
जागते रहो
( Jagte raho )
ये जागने के दिन हैं
जागते रहो…
दिन रात भागते रहो
ठहरो न पल भर के लिए भी
क्या पता उस पल ही कोई
कर जाए छल संग तेरे
डाल दे डेरा अपना घर तेरे!
देख रहे हो देश दुनिया में
क्या क्या हो रहा है?
मनुज बन लाश अपना
खुद ही ढ़ो रहा है!
किसी से किसी को रही ना हमदर्दी
जाने किस बला ने
हालत मनुज की ,ऐसी कर दी?
भूला शिक्षा संस्कार व सहकार
नतीजा चहुंओर है हाहाकार
अमेरिका चीन जापान कनाडा भारत
ईरान अफगानिस्तान पाक की पूछो ही मत
आतंक अफीम की है जिन्हें लत!
हिंसा के ये हिमायती
जान जहाँ है किफायती
पलक झपकते ही सब हो जाता खाक
इरादे इनके सदैव नापाक
गोली बंदूक निकले बात बात
मिटती जा रही है मनुष्य की जात
कौन सिखाएगा इन्हें?
अब मानवता का पाठ
चेते नहीं जो खुद से
तो होगा सर्वनाश!
लेखक–मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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