जल है तो कल है | Jal hai to kal hai kavita
जल है तो कल है
( Jal hai to kal hai )
पानी न बहाओं यारों कोई भी फ़िज़ूल,
याद रखना हमेंशा नही करना है भूल।
इसी से है जीवन ये हमारा एवं तुम्हारा,
पेड़-पौधे जीव-जन्तु जीवित है समूल।।
वसुंधरा पर यें बहुत दूर-दूर तक फ़ैला,
फिर भी कमी गाॅंव एवं शहर में भला।
न करें नदी तालाब जलाशय को मेला,
बचाना है जल पुरूष हो चाहें महिला।।
यहीं है जल इससे हम-सबका है कल,
खेत खलिहान हरा भरा रहता उपवन।
सब कुछ है यार इस जल पे ही निर्भर,
इसके बिन नहीं किसी का भी जीवन।।
नदियां तालाब नहरें समुन्द्र चाहें झील,
इनकी है माया एवं इसका ही है खेल।
गांव शहर चाहें खेत की हरी-भरी बेल,
यहीं अमृत धारा सारा इसका ही मेल।।
शुद्ध साफ ठण्डा जल पीना है सबको,
घड़ा मटका टैंक भरके रखना इसको।
बाहर या खुलें में कभी करना न शौच,
भविष्य की चिन्ता-करें बचाऍं इसको।।