जीत की आदत
( Jeet ki aadat )
जीत की आदत बनाना ही होगा,
ना करें बहाना आगे बढ़ना होगा।
झूल रहीं उनकी मझधार में नैया,
जो परेशानियों से घबराया होगा।।
जीतने का जज़्बा रहता सब को,
जीत लेते है जो पक्के ठान लेते।
सो बातों की है यह एक ही बात,
निड़र होकर अग्रसर बढ़ते जातें।।
कभी न रोना किस्मत भाग्य पर,
सर्दी गर्मी और बरसात देखकर।
हार में भी छुपी-रहती यह जीत,
चमकता वहीं है हजारों के बीच।।
कभी भी निराशा कोई ना लाना,
पर्वत पहाड़ नदी पार कर जाना।
ज़िंदगी में होंगे उतार एवं चढ़ाव,
सब खुश होकर सहनकर जाना।।
पथिक बनकर चलतें तुम्हें जाना,
और राह के काॅंटे समेटते रहना।
पीछे कभी बिलकुल नहीं देखना,
मुसाफिर की तरह चलतें रहना।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )