Kavita Parv par Garv
Kavita Parv par Garv

पर्व पर गर्व 

( Parv par Garv )

 

भले जली होलिका
आज भी जल रही है
जिंदा है आज भी हिरण कश्यप
रावण आज भी जिंदा है

बच गया हो प्रहलाद भले
बच गई हों सीता भले
अहिल्या को मिल गई हो मुक्ति
तब भी आज भी
स्थिति वही है

खुशियां मनाएं किस बात पर
खेल कैसे रंगों की होली
आज है कौन राधा कान्हा जैसे
बदल गई है जब नजर और बोली

होली ढल गई है बहाने में
बदली है सोच जमाने में
रंगों के भीतर रंग अलग हैं
मिलने के अब ढंग अलग हैं

मानना है उत्सव मना लीजिए
खुद को भी कुछ निखर लीजिए
सार्थक होंगे तब पर्व सभी
वास्तव में होंगे तब गर्वित हम सभी

मोहन तिवारी

( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

सफर | Kavita Safar

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here