Jeevan Sara
Jeevan Sara

जीवन सारा बीत गया

( Jeevan sara beet gaya ) 

 

बीत गई वो भोर सुहानी
सुंदर सब शामें बीत गई
जीवन ये सारा बीत गया
सांसे डोर थामे बीत गई

बीत गई वो मस्त बहारें
रैना अंधियारी बीत गई
उमड़ा आता प्रेमसागर
वो बातें सारी बीत गई

बीत गए वो ख्वाब सुरीले
नयनों की ज्योति बीत गई
धरा नापते डग भर भर के
वो तन की शक्ति बीत गई

बीत गई मुस्कान अधर की
बहती वो रसधारें बीत गई
बीत गई है श्रवण की शक्ति
मांझी पतवारें सब बीत गई

 

कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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