हवा का झोंका

( Hawa ka jhonka )

 

काश कोई हवा का झोका,
उसे छूकर आता।
उसकी खुशबू को खुद को समेटे,
मैं महसूस कर पाता उसको, इन हवाओं में ।
मैं एक बार फ़िर, खो जाता,
उसकी यादों की रंगीन फिजाओं में।
मेरी आंखों के सामने छा जाता ,
उसका किसी हवा के झोंके सा,
मेरी जिन्दगी में आना ।
साथ बारिश की हल्की फुहार सा,
खुशियों को का लाना।
काश कोई हवा का झोंका,
मोहब्बत ए पैगाम लाता।
उसके दूर होकर भी पास होने का,
या बाढ़ की तेज हवाओ के माफिक,
मेरा सब कुछ बहा ले जानें का।
काश कोई हवा का झोंका,
मुझे मेरे अतीत में ले जाता।
काश मैं सुधर पाता अपनी गलतियों को,
रोक पाता उसे यू जानें से।
गले से लगा लेता, रोक लेता
उसे अपने आलिंगन से।
काश कि वो हवा का झोंका,
ना आया होता मेरे खुशनुमा जीवन में।

 

© प्रीति विश्वकर्मा ‘वर्तिका

प्रतापगढ़, ( उत्तरप्रदेश )

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