जिम्मेदारी | Jimmedari kavita
जिम्मेदारी
( Jimmedari )
रिश्तों की डगर पे जिम्मेदारी खूब निभाता हूं
जीवन के उतार-चढ़ाव में संभल कर जाता हूं
घर परिवार कुटुंब अपनों में स्नेह लुटाता हूं
अपनापन अनमोल है सबसे प्यार पाता हूं
मात पिता की सेवा करें समझे सब जिम्मेदारी
तरुणाई चार दिन की फिर आगे अपनी बारी
सीमा पर सजग प्रहरी भी सीना तान निभाता है
आन तिरंगा की खातिर वो अपना लहू बहाता है
एक पिता संतान को शिक्षा भली दिलाता है
शिक्षा संस्कार देकर सारी जिम्मेदारी निभाता है
अपनी जिम्मेदारी सदा स्नेह दुलार कर करती है
प्रथम गुरु माता जो औलाद में संस्कार भरती है
भाई अपनी जिम्मेदारी बहना को बतलाता है
संकट में रक्षा करूंगा वचन दे राखी बंधवाता है
गृहस्थी का रथ भी दो पहियों पर चलता है
सुखी वो घर होता जहां प्रेम भाव ही पलता है
सात फेरों में वचन दे जो जिम्मेदारी मानता है
वह घर स्वर्ग से सुंदर है सारा जहां जानता है
नारी भी जिम्मेदारी खुद सुंदरता से निभाती है
सभ्यता संस्कार संजो राष्ट्र संस्कृति दर्शाती है
समाज का हर बाशिंदा जनता जिम्मेदारी जानो
अपना देश है अपना राष्ट्र जीवन मूल्य पहचानो
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )