
जिसके हुई उल्फ़त में जख़्मी रुह है
( Jiske Hui Ulfat mein Zakhmi Ruh Hai )
जिसके हुई उल्फ़त में जख़्मी रुह है
यादों में हर पल उसकी डूबी रुह है
जख़्मी जख़्मी हुई है इतनी प्यार में
कब चैन से ही मेरी रहती रुह है
उस चाँद सी सूरत के ही दीदार को
की रात भर भटकती मेरी रुह है
जो दें गया मुझको है प्यार में दग़ा
उसके दग़ा में हर पल जलती रुह है
कब जाने ही वो आयेगा मुझे मिलनें
यादों में गीत उसके गाती रुह है
वो ही हक़ीक़त में मिलता नहीं आज़म
हां ख़्वाब में उससे ही मिलती रुह है