Ghazal || जुगनू आये नया उजाला लेकर
जुगनू आये नया उजाला लेकर
( Jugnoo Aaye Naya Ujala Lekar )
बुझते दीपक मे साथ जलने आई हूं
अपनी सारी ही तमन्नाए साथ लाई हूँ
खुदको खोकर मेरा मोल लगाया तुमने
दिल के बाजार में बिकने के लिए आयी हूँ
चोट पत्थर से नहीं फूल से खायी तुमने
इक नादान मुहब्बत में लुट गये तुम भी
इस जमाने में खायी ठोकरें हमने
महफिल ऐ इश्क से चले हैं रुसवा होकर
रात आई है छत पे सितारे लेकर,
नींद आई है ख्वाब तुम्हारे लेकर,
लेके काफिला दुआओं का सभी
जुगनू आयें नया उजाला लेकर
दिल को नया पयाम देते है
मुजुराहटो को नया नाम देते है
तुम तो घबराते मेरे घूँघरू से भी
तेरी आहटो को नया नाम देते हे
कहते हो समझते मेरी किताबों को
उडते परिदे के खुले आसमानो को
भेद तुझमें औ मुझमें इतना सा
हमतो पढलेते हैं खामोश निगाहो को
ढलती महफिल के सारे हालातो को
हम तो पढ़ते हैं कोरे कागज को
दिल से जाने का कर लिया वादा
हम समझते है हर इशारो को
डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून
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