कभी सोचता हूँ मैं | Kabhi Sochta Hoon Main
कभी सोचता हूँ मैं
( Kabhi sochta hoon main )
कभी सोचता हूँ मैं, नहीं है जरूरत तेरी।
मगर क्यों मुझे फिर भी, आती है याद तेरी।।
कभी सोचता हूँ मैं———————।।
मुझको मिलते हैं हर दिन, यहाँ चेहरें हसीन।
जो नहीं तुमसे कम, लगते हैं मेहजबीन।।
मगर इन आँखों में तो, बसी है तस्वीर तेरी।
कभी सोचता हूँ मैं——————-।।
ऐसा भी नहीं है कि, नहीं कोई दोस्त मेरा।
कि अकेला हूँ मैं, नहीं कोई घर है मेरा।।
फिर भी चला आता हूँ , बेझिझक दर तेरी।
कभी सोचता हूँ मैं——————-।।
मालूम नहीं मुझको, क्यों तुमको चाहता हूँ।
क्यों सभी से तुमको मैं, अपना कहता हूँ।।
नहीं मालूम मुझे, क्यों पसंद है नफरत तेरी।
कभी सोचता हूँ मैं——————–।।
होगा अंजाम क्या अब, मेरी मोहब्बत का।
क्या होगा साकार, ख्वाब मेरी मोहब्बत का।।
यह सोचकर शायद मैं, करता हूँ इज्जत तेरी।
कभी सोचता हूँ मैं———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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