इंसान बनो

( Insan Bano : Kavita )

 

ये हर तरफ क्या हो गया है,

क्यों हर जगह उदासी का मंजर है ।

लोग छोटी-छोटी बातों पर,

क्यों बेवजह लड रहे हैं,

हर तरफ द्वेष नफरत ही,

क्यों पल रही, बढ़ रही है ।।

कहीं रिश्ते में दूरियां आ रही;

तो कहीं इंसानियत मर रही है !

हर तरफ हर रिश्ते बिखर से रहे हैं,

चाहे वह सगे संबंधियों का हो

या हो समाज, पड़ोस का ।।

इंसान अकेला हो रहा है !

तनाव में वह जी रहा है !

हर तरफ बुराई बढ़ रही,

अच्छाई तो जैसे मर ही गई है !!

लोग एक दूसरे की बुराई कर रहे हैं,

सामने वाली की कमी ढूढ रहें,

और खुद को नेक, ईमानदार समझ रहे हैं !

क्या करें..!!!

शायद इंसानी फितरत ही कुछ ऐसी है

अरे उस खुदा से तो डरो,

जिसने इंसान का जन्म दिया ।

इंसान हो इंसान बनो,

जानवरों जैसा व्यवहार न  करो ।

आगे आओ.. बुराई छोड़कर

इंसानियत का फर्ज निभाओ

खुद में इंसानियत ला इंसान बन जाओ ।।

 

लेखिका : अर्चना

यह भी पढ़ें : –

https://www.thesahitya.com/kabita/

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here