‘छेड़खानी और समझदारी’
तीन व्यक्ति चौपाल पर खड़े होकर महिलाओं पर बढ़ती छेड़खानी की घटनाओं पर चर्चा कर रहे थे। तीनों व्यवसायी हैं। उनमें से पहला व्यक्ति बोला:-
“कल यहीं मेरी दुकान के सामने एक लड़के ने एक लड़की को छेड़ा और उसके साथ बदतमीजी की। आसपास के सभी लोगों ने इस घटना को अपनी आंखों से देखा, लेकिन किसी की भी उस लड़के को डांटने या उससे कुछ कहने की हिम्मत ना हुई। इस मोहल्ले के लोगों से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन ऐसा हुआ। बाद में पता चला कि दोनों एक ही धर्म और जाति के थे। लड़का एक प्रतिष्ठित पार्टी से जुड़ा हुआ था। जिस वजह से लोग मूकदर्शक बने रहें।”
दूसरा व्यक्ति बोला:-
“उसी धर्म और जाति के लोग यहां रहते हैं जिस धर्म के वे लड़का और लड़की थे, इसलिए बवाल नहीं हुआ, लोगों ने विरोध नहीं किया। अगर यह घटना कहीं और होती… मतलब जहां एक धर्म का बाहुल्य हो.. वहां किसी दूसरे धर्म का लड़का आकर, अगर उनकी बहू या बेटी को छेड़ दे तो वहां का पूरा इलाका उस लड़के का विरोध करने लग जाता। उसकी पिटाई करता तो अलग। कहीं-कहीं तो लोग दूसरे धर्म के लड़के को जान से मार देते हैं और सबूत तक मिटा देते हैं। ऐसा बहुत बार हुआ है। यह हर जगह की बात है।
एक धर्म के लोग अपने धर्म के लोगों के प्रति नरम रवैया अपनाते हैं लेकिन दूसरे धर्म के लोगों को टेढ़ी निगाहों से देखते हैं। अपने इलाके में उनकी बदतमीजी बर्दाश्त नहीं कर पाते। धर्म के नाम पर भेदभाव बहुत ज्यादा है। लोग मरने-मारने को तैयार रहते हैं। अपने धर्म की लड़कियों पर दूसरे धर्म के लड़कों की कुदृष्टि उन्हें बर्दाश्त नहीं है भले ही लड़का-लड़की आपस मे प्रेम ही करते हों।”
तीसरा व्यक्ति बोला:-
“मेरी सोच बिल्कुल अलग है। हमारा पूरा परिवार इस तरह की घटनाओं का खुलकर विरोध करता है, चाहे लड़का या लड़की हमारे धर्म की हो या नहीं हो। गलत बात पर हम चुप नहीं बैठते। हम तुरंत एक्शन लेते हैं। एक घटना बताता हूँ। अबसे 6 माह पहले की बात है। दोपहर का एक बजा होगा।
दूसरे धर्म की एक लड़की हमारे मोहल्ले से निकलकर अपने घर जा रही थी। हमारे पड़ोस में रहने वाले एक लड़के ने जो हमारे ही धर्म और हमारे ही परिवार से संबंध रखता था… ने उस लड़की को छेड़ दिया, उस लड़की का हाथ पकड़ कर बदतमीजी की। उस लड़की ने बड़ी मुश्किल से उस लड़के से खुद को छुड़ाया और भाग पड़ी। वह रोते हुए उस लड़के को गाली देते हुए… बड़बड़ाती हुई चली जा रही थी। मेरे बड़े भाई ने इस तरह बड़बड़ाते हुए उस लड़की को देखकर पूछा-
“बहन क्या हुआ? तुम क्यों रो रही हो? उस लड़के ने तुम्हें कुछ कहा?”
वह बोली:-
“भैया मैं यहां से रोज कोचिंग के लिए पैदल निकलती हूँ। यह रास्ता मुझे काफी शॉर्ट पड़ता है, नहीं तो मुझे एक किलोमीटर से ज्यादा रास्ता पैदल चलना पड़े। यह लड़का रोज मेरा पीछा करता है, मेरा रास्ता रोकता है और गंदे गंदे कमेंट करता है। आज तो इसने हद ही कर दी। इसने मेरा हाथ पड़कर घर में खींचने की कोशिश की।”
उस लड़की के मुंह से यह बात सुनकर मेरा बड़ा भाई आगबबूला हो गया और उसने उस लड़के को पकड़कर तीन-चार झापड़ कसकर रसीद कर दिए और बोला:-
“कमीने, लड़की को छेड़ता है, परेशान करता है। आज के बाद अगर तूने किसी भी लड़की को छेड़ा या उसका पीछा किया या उसपर गंदे कमेंट किये तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं तुझे जान से मार दूंगा।”
भाई से पिटने के बाद वह लड़का मेरे भाई को सबक सिखाने की बात बोलकर वहां से भाग गया। शाम के वक्त उस लड़के के परिवारवालों एवं पड़ोसियों ने हमारे घर पर धावा बोल दिया और मेरे बड़े भाई से लड़ने आ गए।
वे बोलने लगे:-
“दूसरे धर्म की लड़की के लिए तुमने अपने धर्म के और अपने परिवार के लड़के पर हाथ कैसे उठाया? तुम्हारी इतनी हिम्मत? कौन लगती है वह लड़की तुम्हारी? कम से कम यह तुम्हारी बहन-बेटियों को तो नहीं छेड़ रहा था जो तुम्हें इतना गुस्सा आया? क्या तुम्हें नहीं पता कि दूसरे धर्म के लोगों ने हम पर कितना जुल्म उठाया है, हमें दबकर रहना पड़ा है। अगर यह उस लड़की को छेड़ रहा है तो तुम्हें क्यों दिक्कत हुई?
दूसरे धर्म की लड़की से संबंध बनाने से जन्नत मिलती है, क्या यह बात तुम नहीं जानते? अगर तुमने फिर से इसे रोका या टोका… और अगर गलती से भी हाथ उठाया तो हमसे बुरा कोई ना होगा। तुम तो इसके बड़े भाई जैसे लगते हो। तुम्हें तो इसका सपोर्ट करना चाहिए और तुम इसका विरोध कर रहे हो, इसे पीट रहे हो। यह सब नहीं चलेगा। ध्यान रखना।”
मेरे भाई ने स्पष्ट तौर पर उनकी बात का विरोध करते हुए कहा:-
“बहन-बेटी चाहे हमारी हो या किसी भी धर्म की हो.. उनका हमें आदर करना आना चाहिए। उनकी इज्जत से खेलने का किसी को हक नहीं। हमारी बहन बेटियों को भी दूसरे धर्म के लोग इसी सोच के साथ छेड़े, उनसे बदतमीजी करें तो कैसा लगेगा? मेरी आंखों के सामने अगर कोई भी ऐसी वैसी हरकत करेगा तो मैं यह सब बर्दाश्त नहीं करूंगा, उसको खूब पीटूंगा।”
“इतना समझाने के बाद भी तेरी समझ में बात नहीं आ रही। क्या वह लड़की तेरी कुछ लगती है?” उन लोगो ने बड़े भाई को धमकाने की कोशिश की।
“हाँ, वह लड़की मेरी जान पहचान की है। उनके घर मेरा आना जाना है। उसके पिता मेरी दुकान से ही कपड़े खरीदते हैं। तुम लोग इस बात का शुक्र मनाओ कि मैंनें सिर्फ चार झापड़ मारकर इसको जेल जाने से बचा लिया। वह लड़की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने जा रही थी। मैंने उसको समझाया और कहा- ‘बहन, तुम रोओ मत, परेशान न हों। मैं आज इस लड़के को ठीक कर दूंगा और यह लड़का कल से यहां नज़र नहीं आएगा।
मैं आज इसके मां-बाप से भी बात करूंगा और अकल तो इसकी मैं अभी ठिकाने लगाता हूँ। यह बोलकर.. उस लड़की को दिखाने के लिए मैंने इस कमीने के झापड़ मारे ताकि वह लड़की इसकी कोतवाली में शिकायत दर्ज न करें। सोचो, अगर इसकी शिकायत हो जाती तो यह अब तक जेल में होता। इसको समझाने और डाँटने की बजाय उल्टे तुम मुझे धमकाने आ गए, मुझसे लड़ने आ गए।
अगर तुम्हें अपना लड़का इतना शरीफ नजर आ रहा है तो एक काम करते हैं, कोतवाली चलते हैं। वहीं फैसला होगा। मैं उस लड़की के पापा को फोन करके उन्हें और उस लड़की को कोतवाली बुला लेता हूँ। इधर से हम सब भी कोतवाली चलते हैं। बोलो, क्या कहते हो? मेरा ऐसा करने से अगर लड़की तुम्हारे लड़के को छेड़खानी के आरोप में जेल में बंद करवा देती है तो मुझसे कुछ कहने की जरूरत नहीं है.. क्योंकि तुम्हें मेरी बात तो समझ में आ ही नहीं रही। जब लड़का जेल चला जाएगा तभी बात तुम लोगों की समझ में आएगी।”
कोतवाली और जेल जाने की नाम सुनते ही उन लोगों की सारी अकड़ ढीली पड़ गई। अब उन्होंने मेरे भाई से कुछ ना कहकर.. उल्टे अपने लड़के को पीटना शुरू कर दिया और गालियां देते हुए कहने लगे:- “हरामखोर, पूरा दिन आवारागर्दी करता हुआ घूमता रहता है। न पढ़ने का और न लिखने का.. न जाने किस घड़ी यह पैदा हुआ। आये दिन इसकी शिकायतें आती रहती हैं। बदतमीज, एक तो गलत काम करता है और ऊपर से शरीफ बनकर दिखाता है। घर चल… घर चलकर तुझे बताते हैं।”
इसके बाद उन्होंने मेरे भाई से अपनी बदतमीजी के लिए माफी मांगते हुए कहा:- “भाई, हमारी बातों का बुरा मत मानना। कल से हमारा लड़का इस गली में खड़ा नजर नहीं आएगा, इसकी हम गारंटी देते हैं। उस लड़की से बोल देना कि कोई भी उसको परेशान नहीं करेगा। उसको डरने, घबराने की कोई जरूरत नहीं है। वह इस रास्ते पूरी तरह सुरक्षित है और हाँ.. वह हमारे लड़के की शिकायत भूलकर भी कोतवाली में दर्ज ना करें। आप फोन पर उन्हें समझा देना। बोल देना कि आपकी लड़के व उसके परिजनों से बात हो गई है।” बड़े भाई ने उन्हें कार्यवाही न करवाने का आश्वासन देते हुए विदा किया।
उनके जाने के बाद मैंनें बड़े भाई से पूछा:-
“भैया, क्या वह लड़की सच में आपकी जान पहचान की है? क्या उसके घर आपका आना जाना है?”
बड़े भाई ने मुस्कुरा कर कहा:-
“नहीं, मैं उस लड़की को नहीं जानता और ना ही मैं कभी उनके घर गया। मैंने तो अंधेरे में तीर चलाया। झूठ बोला। जब मुझे लगा कि वे लोग अपने लड़के की गलती मानने को तैयार नहीं है और उल्टे उसकी तरफदारी कर रहे हैं तो मुझे यही करना सही लगा… इसलिए मैंनें झूठ बोला कि वह लड़की मेरी परिचित है और उसको ही मैंनें कोतवाली जाने से रोका है। मेरा यह दांव काम कर गया। अब कम से कम वह लड़का या इस मोहल्ले में रहने वाला अन्य कोई और लड़का.. इस गली से गुजरने वाली दूसरे धर्म की लड़कियों के साथ छेड़खानी तो नहीं करेगा। लड़कियां बिना डरे कोचिंग तो जा सकेंगी।”
मैं भैया के इस समझदारी से बहुत प्रभावित हुआ। सही समय पर उनकी अक्ल ने काम किया और स्थिति संभाल ली।
शिक्षा:- लड़कियों को उपभोग की वस्तु न समझें। अपने बच्चों को लड़कियों की इज्जत व सम्मान करना सिखायें। लड़कियों को भी प्यार, सम्मान, सुरक्षा दें। लड़कियों को भी लड़कों की तरह शिक्षा का.. बराबरी का हक दें। सिर्फ धर्म व जाति के नाम पर दूसरे धर्म की बच्चियों के साथ छेड़खानी, बदसलूकी व इज्जत लूटने जैसी घटनाओं को अंजाम देना व सही ठहराना कहीं से भी ठीक नहीं है।
गलत बातों का विरोध करना बेहद जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि कल को हमारी बहन-बेटियां इसकी चपेट में आ जाएं। यह सोचिए कि सबसे पहले हम इंसान हैं और इंसान होने के नाते सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है। धर्म-जाति के नाम पर भेदभाव न करके सबको समान दृष्टि से देखें और न्याय करें।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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