धर्मांतरण | Kahani Dharmantaran
अभी सुबह-सुबह का मुश्किल से 7:00 बजे होंगे। महेश मॉर्निंग वॉक से लौटा ही था कि रास्ते में रुमाल लटकाए हुए बड़ी तेजी से गांव का एक व्यक्ति चला जा रहा था। मनीष को देखने के बाद वह थोड़ी और तेजी चलने लगा जिससे आमने-सामने उसकी टकराहट ना हो।
फिर भी टकराहट हो गई। उसने पूछा- ” का हो बाबू!इतनी सुबह-सुबह कहां चल दियों।”
उस व्यक्ति ने कहा-” कहीं नहीं बस ऐसे रिश्तेदारी जा रहा था!”
मनीष को उसके चेहरे से देखने पर लग रहा था कि वह कुछ छिपा रहा है। क्योंकि उसकी नज़रें मनीष से मिल नहीं रही थी वह अगल-बगल झांक रहा था।
आज रविवार का दिन था इसलिए मनीष भी फुर्सत में था। उसे लग रहा था कि कोई ऐसा रहस्य है जो यह व्यक्ति बताना नहीं चाह रहा है । वैसे तो सारी बात वह बहुत आराम से बता दिया करता था।
मनीष ने फिर कहा -“आखिर कौन ऐसी बात है भाई जो तुम छुपा रहे हो। तुम्हें देख कर तो लगता नहीं इतनी सुबह-सुबह तुम कहीं रिश्तेदारी जा रहे हो ।कहीं कोई बीमार वगैरा तो नहीं है।”
उस व्यक्ति को लगा कि आज हमारी पोल पट्टी खुलने वाली हैं। उसने छूटने का कोई चारा न देखकर कहां-” का बताएं महाराज ! तोहसे का छिपाएं। हम जा रहें हैं ईसू दरबार।”
अच्छा अब हम का जाए दा। फिर वह व्यक्ति बड़ी तेजी के साथ निकल गया। मनीष उसे जाते हुए देखता रहा। उसे लगा कि गांव में बहुत बड़ा षड्यंत्र चल रहा है।
यह ईसाई मिशनरियां सेवा के नाम पर धर्मांतरण लोगों का करवा रहीं। उसने अपने एवं आसपास के गांव में जब इसकी तहकीकात की तो उसका सिर चकरा गया। गांव का एक बड़ा हिस्सा धर्मांतरित हो चुका था। उनमें निम्न वर्ग के लोगों का सबसे ज्यादा धर्मांतरण हुआ था।
उसने कुछ लोगों से चर्चा किया तो पता चला कि यह ईसाई मिशनरियां गांव में शुरू शुरू में दवा वगैरा देने आई थी। गांव के कुछ स्त्रियों को भूत प्रेत का चक्कर था इसका इलाज कराने के लिए उन्होंने शहर में लगने वाले यीशु दरबार में बुलाया। वहां पर उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि तुम्हारे राम कृष्ण हनुमान शिव आदि में कोई शक्ति नहीं है देखो हमारे यीशु मसीह ने तुम्हें कैसे चंगा कर दिया।
फिर उन लोगों ने उनके मन में हिंदू देवी देवताओं के प्रति घृणा का बीज को दिया। यह लोग देखने में पूरे हिंदू ही रहते हैं लेकिन उनका संपूर्ण मन ईसाईयत में तब्दील हो चुका होता है। वाह्य रूप से आपको कहीं से भी नहीं लगेगा कि यह लोग ईसाई हो चुके हैं। बस मात्र यीशु का क्रॉस पर लटकाया हुआ एक लॉकेट गले में धारण करते हैं।
मनीष ने एक दिन उस व्यक्ति को समझने का प्रयास किया कि-” देखो तुम इस प्रकार से कहां फंस गए हो! आखिर तुम्हें क्या दिक्कत है जो तुमने ऐसा यह स्वीकार कर लिया!”
उस व्यक्ति ने कहा -” अरे महाराज! यीशु महाराज में बहुत बड़ी शक्ति बा! पूछा जिन सब भूत प्रेत भगाए देते हैं।”
मनीष ने फिर कहा -” किसको भूत पकड़ा था।”
उस व्यक्ति ने कहा-” हमरे मेहरारू के और केकरे। जब से ऊ यीशु दरबार में जाने लगी भली चंगी हो गई।”
मनीष को लगा कि भूत प्रेत के नाम पर इस व्यक्ति के मस्तिष्क को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया गया है। इसके पूरे मनो मस्तिष्क में यीशु दरबार का नशा सवार हो चुका है।
इसे समझाना बड़ा कठिन है। क्योंकि जब किसी के मन में कोई बात बैठ जाती है तो एक प्रकार से वह उसमें विमोहित हो जाता है । फिर उसे समझाना उतना ही कठिन हो जाता है।
मनीष को लगा कि एक व्यक्ति को समझाने से काम नहीं चलेगा। जब तक इसकी जड़ में जाकर के धर्मांतरण पर चोट नहीं की जाएगी।
इसके बाद उसने यह पता करने का प्रयास किया कि आखिर लोगों कि ईसाई क्यों अपना रहे हैं? उसे पता चला कि इसका बहुत बड़ा कोई कारण नहीं है। इसके पीछे ईसाई मिशनरियों की बहुत बड़ी चाल है जो की गांव-गांव में सेवा के नाम पर धोखे से उन्हें ईसाइयत में परिवर्तित कर देती हैं। कुछ झूठा मूठा चमत्कार के नाम पर बेवकूफ बनाकर उन्हें ईसाई बना लेती हैं।
एक बार जब व्यक्ति का मन परिवर्तित हो जाता है तो दोबारा उस व्यक्ति को बदलना अति कठिन होता है। विशेष कर जो महिलाएं परिवार से परेशान रहती हैं जिनको यह लगता है कि मुझे किसी प्रेत बाधा ने पकड़ लिया है उनके लिए समझाना और कठिन हो जाता है।
ऐसी स्थिति में उसे एक ऐसे समाधान की आवश्यकता थी।एक ऐसे चमत्कार की आवश्यकता थी जो उनसे भी ज्यादा प्रभावी चमत्कार हो। इस भूत प्रेत की जड़ में जाने पर उसने देखा कि वास्तव में किसी स्त्री को कोई भूत प्रेत पकड़ता ही नहीं है। वह मात्र अपने घर परिवार से परेशान रहती है ।
अपने पति एवं परिवार का प्रेम पाने के लिए वह इस प्रकार की नौटंकी किया करती है। अधिकांश में वह ऐसा जानबूझकर किया करती हैं। क्योंकि जब किसी स्त्री को भूत प्रेत लगता है तो उसके परिवार वाले उसे पूछने लगते हैं प्रेम करने लगते हैं।
ऐसी स्त्रियां जब किसी ओझा सोखा या मजार दरगाह या फिर किसी इस प्रकार के यीशू दरबार आदि में जाती हैं तो उन्हें थोड़ा मानसिक शांत्वना मिलती है। वहां पर जो इस प्रकार के उठा पटक की जाती है तो उसे लगता है कि थोड़ा आराम हो गया।
एक प्रकार से यह सब मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। एक तो ऐसी स्त्री ज्यादा उठा पटक करने, चीखने चिल्लाने से थक जाती है । इसके बाद उसे जब कोई भभूत आदि देता है तो उसे लगता है कि थोड़ा आराम हो गया । वास्तविक रूप से देखा जाए तो इस प्रकार की प्रक्रिया में किसी को भूत प्रेत का कोई हाथ नहीं है।
उसने इसकी जड़ में जाते हुए यह अनुभव किया कि ना तो किसी को भूत प्रेत पकड़ता है। ना कोई झाड़ता उतारता है। यह सब नौटंकी है। यूं ही चलती रहती हैं।
उसने एक बात और गौर किया कि इन सब के बीच में स्त्रियों का बहुत बड़ा मानसिक शोषण किया जाता है ।कभी-कभी तो शारीरिक शोषण भी की भी घटनाएं होती हुई सुनाई पड़ते हैं।
मनीष को लगा कि समस्या यह तो बड़ी गंभीर है। उसे लगा कि मात्र समझाने बुझाने से काम नहीं होने वाला है इसका कोई ना कोई उचित समाधान खोजना होगा। इसके लिए उसने सबसे पहले गांव के ग्राम प्रधान एवं अन्य सम्मानित व्यक्तियों से संपर्क किया और इस प्रकार की समस्या से उन्हें अवगत कराया।
उन लोगों ने भी ईसाई में धर्मांतरित हुए लोगों को समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन लोग समझने के लिए तैयार नहीं हुए। फिर उसने सभी लोगों से मिलकर एक सभा बुलाई और उसने कहा कि जिस कारण से वे सब ईसाई हुए हैं उनकी समस्या का समाधान कर दे तो उन्हें पुनः सनातन संस्कृति हिंदू धर्म में लौट आना होगा। इसके लिए उसने ग्राम प्रधान से मिलकर थोड़ा जोर जबरदस्ती भी करने का प्रयास किया।
अधिकांश में निम्न वर्ग के लोग ही इस प्रकार के ईसाइयत में परिवर्तित हुए थे। उसने ग्राम प्रधान से मिलकर यह कहलवाया कि देखो जो तुम्हें सब सुविधा सरकार दे रही है यह हिंदुओं को दे रही है। तुम तो ईसाई हो गए हो । यह सारी सुविधा बंद हो जाएगी । यदि भला चाहते हो तो यह सब नाटक बाजी छोड़ो। जैसे तुम कर रहे थे वैसे करो। यह भूत प्रेत पिसाच सब मैं भगवा देता हूं।
इसके बाद मनीष ने ग्राम प्रधान से मिलकर लोगों को सरकारी सुविधा दिलवा दिया। साथ ही उसने भूत प्रेत की समस्याओं के लिए प्रचारित करवा दिया के हमारे पास एक दिव्य जल है या किसी संत महात्मा का दिया हुआ दिव्य प्रसाद हैं। जिसके सेवन से भूत प्रेत आदि भाग जाता है।
उसके इस प्रकार से किए गए प्रयास से धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा था। लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने लगे। फिर उसने आर्य समाज, गायत्री परिवार आदि द्वारा चलाए गए दैनिक हवन महिलाओं को बात करके कराने लगा। जिसके कारण उनके घरों में भी दिव्य औषधियां के प्रभाव से सुख शांति आने लगी।
अब सभी लोग अपनी जड़ों में लौट चुके थे। उन्हें लगने लगा था के किस प्रकार से उन्हें इन ईसाई मिशनरियां ने धोखा देकर के हमें धर्म भ्रष्ट कर दिया था।
धीरे-धीरे उन्हीं लोगों ने जो कि ईसाई बन चुके थे अपने साथी भाइयों को भी ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र को बताया और धीरे-धीरे उन्हें भी आर्य वैदिक संस्कृति की ओर लोटा लाएं। अब सभी लोग अपनी संस्कृति अपने धर्म में लौटकर बहुत खुश थे।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )