लवली | Kahani Lovely
लवली कुछ गुमसुम सी बैठी है। उसे न जाने क्या हो गया है कि सारे घर में धमाल मचाने वाली किस सोच में डूबी है । मां को देखते ही प्रश्नों की झड़ी लगा देती है –
अम्मा अम्मा आप क्यों मांग में सिंदूर लगाती हो ?
मुझे क्यों नहीं लगाती ?
हम कान क्यों छेदते हैं?
लड़के कान में बाली क्यों नहीं पहनते ?
हम लड़कियां ही चूड़ियां क्यों पहनती हैं ?
लड़के क्यों नहीं चूड़ियां पहनते ?आप बड़े बाल क्यों रखती हैं ?पापा क्यों नहीं रखती हैं ?
लवली को तो जैसे प्रश्नों की बौछार बंद होने का नाम ही नहीं ले रही हो?
एक साथ इतने प्रश्नों को सुनकर किस-किस का उत्तर देती मां । उन्हें एक विचार सूझी और तो पूछ बैठे लवली से-” अच्छा बेटी अभी तुम्हारे सभी प्रश्नों को उत्तर देती हूं । पहले यह तो बताओ कि आज तुम्हें इतने प्रश्न कहां से सोच ली । कभी तो तूने ऐसा नहीं किया ।”
मां बच्ची के मस्तक को प्यार से चूम लेती है।
अम्मा आज हमारे विद्यालय में एक गुरु जी आए थे जो बता रहे थे कि बच्चों को खूब प्रश्न पूछने चाहिए । जो खूब प्रश्न पूछ कर उसके उत्तर ढूंढते हैं वही एक दिन बहुत बड़े वैज्ञानिक बनते हैं। हमें जिज्ञासु होना चाहिए । जिज्ञासा से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई । आज तो हम सुख सुविधा के साधन देख रहे हैं। यह किसी की जिज्ञासाओं की खोज का ही परिणाम है । मैं भी आध्यात्मिक वैज्ञानिक बनूंगी।
मैं भी खोज करुंगी कि लोग धोखाधड़ी , चुगलखोरी क्यों करते हैं?
गुरु जी बता रहे थे कि हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए स्वयं सुखी रहते हुए दूसरों को सुख देना । देखो ना अम्मा हमारे पास कितने कपड़े हैं क्यों हम कुछ कपड़े स्वीटी को नहीं दे देते।
मां तो शांत भाव से बच्ची की बात सुनती जा रही थी । मां का हृदय और प्रेम ममता से भरता जा रहा था । उन्हें आज लगने लगा की मां की सारी लालसा जैसे तृप्त हो गई हैं। हृदय में उमड़ते घुमड़ते भावों को सीमेटकर बोली -” बेटी धन्य है जो तुम्हारी जिंदगी में लोगों को सेवा परोपकार के भाव का जन्म हुआ । धन्य है वे गुरुजी जो बच्चों को ऐसे शुभ संस्कारों के बीज डाला करते हैं।।
अच्छा बताओ बिटिया क्या तुम्हारे गुरु जी ने जिज्ञासा तो जागने की प्रेरणा दी । उसके उत्तर नहीं बताएं। उन्हीं से नहीं पूछ ली, रानी बेटा!”
मां मां गुरुजी कह रहे थे कि आग जब जलती हो तो उसमें पानी डालने से बुझ जाती है परंतु यदि घी डाला जाए तो उसकी लौ और बढ़ती ही जाएगी । आज हमारे गुरुजन एवं माता-पिता बच्चों में जिज्ञासा जगाने के पहले उत्तर दे देते हैं। जिससे बच्चे डर जाते हैं और फिर उत्तर नहीं पूछते। मामा ऐसे बच्चों की जिज्ञासा मर जाती है आप हमें नहीं मारेंगे ना हमारे उत्तरों को बताएंगे।”
गुरु जी ने एक बात और बताएं कि-” बच्चों के अंदर बहुत कुछ करने की शक्ति होती है ।यदि वह अच्छा कर्म करता है तो भगवान भी बन सकता है और गलत संगत एवं कर्मों से राक्षस बन जाता है। हमें किसी बच्चे को झिड़कना नहीं चाहिए बल्कि उसे प्रेम से समझाना चाहिए ।
मेरी बिटिया रानी कितनी बुद्धिमान हो गई है रे तू ! मैं तो सोचती थी कि यह लड़की क्या कुछ कर पाएगी। अच्छा अब हम तुझे बताते हैं कि मैं क्यों सिंदूर लगाती हूं ?
हमारे ऋषि मुनियों ने प्रथा बना दिया था की शादी के बाद सिंदूर लगाने से लोग जानने भी लगते थे इसकी शादी हो गई है।
लवली मां को उत्तरो को सुनकर संतुष्ट नहीं हुई । मां गुरु जी कह रहे थे हर एक क्रिया का वैज्ञानिक कारण होता है। हम जाने या ना जाने। हमारे ऋषि लोग वैज्ञानिक होते थे जो खूब सोच समझ कर उस प्रथा को चलाते थे।
मैं तो हूं अनपढ़ क्या ज्यादा विज्ञान और ज्ञान नहीं जानती ।जितना जानित था बतावत बाटी । जो समझ में नहीं आवे गुरु जी से पूछ लेना।
नहीं मम्मी गुस्सा नहीं होते ।गुरु जी कहते हैं गुस्सा करने से शरीर में जहर बन जाता है । गुस्से में ही लोग लड़ाई झगड़ा करते हैं। हमें गुस्से को कंट्रोल करना चाहिए। मैं तो तेरे उत्तर देने से बाज आईं। मेरी लवली पढ़ लिखकर खूब बड़ी वैज्ञानिक बने। अच्छा बेटा अब सो जाओ लवली भी प्रश्नों में खोई ही सो जाने का नाटक करने लगी।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )