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कुलदीप प्राथमिक विद्यालय बसेड़ा खुर्द में कक्षा 5 का छात्र था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। सब कुछ आसानी से तथा जल्दी से याद कर लेता था। रमेश सर को उस पर गर्व था। वे बाकी बच्चों को कुलदीप से प्रेरणा लेने व मेहनत से पढ़ने के लिए बोलते थे। कुलदीप की पढ़ाई के प्रति रुचि देखकर, कक्षा 6 में प्रवेश हेतु, उन्होंने कुलदीप का विद्याज्ञान परीक्षा का फॉर्म भर दिया था।
कुलदीप के परिवार में उसके मम्मी पापा के अलावा, दो बड़ी बहनें व एक बड़ा भाई था। कुलदीप परिवार में सबसे छोटा था। कुलदीप के भाई बहन पड़ोस के गांव सेमला में, खुशहाल इंटर कॉलेज में पढ़ते थे।
कुलदीप स्कूल नियमित आता था तथा कभी छुट्टी नहीं करता था। अचानक ऐसा हुआ कि कुलदीप लगातार तीन दिन स्कूल नहीं आया। रमेश सर ने उसकी कक्षा के बच्चों से उसके बारे में पता किया तो बच्चों ने बताया कि कुलदीप के पिताजी देवकरण की तबियत खराब है। वो अस्पताल में भर्ती थे।
कल ही घर वापस आए हैं। कुलदीप घर पर ही था। रमेश सर छुट्टी के बाद, कुलदीप के घर गए। घर पर परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे। रमेश सर ने कुलदीप के पिताजी से उनकी तबीयत के बारे में पूछा। उनसे बोला नहीं जा रहा था। वे बहुत कमजोर हो गए थे। उनको घर मे भी बोतल चढ़ रही थी। कुलदीप की मम्मी बोली-
“इनको डॉक्टर ने कैंसर बताया है। पिछले 3 महीने से हम इनको लेकर बहुत परेशान हैं। जगह-जगह डॉक्टरों के पास लेकर भागे फिर रहे हैं, लेकिन कहीं से भी कोई आराम नहीं मिला। जिसने जो भी डॉक्टर बताया, वहीं जा कर इनको दिखाया। सब जमा पूंजी इन पर खर्च हो गई। हालत इतनी खराब है कि पिछले 3 महीनों से बच्चों की स्कूल फीस भी जमा नहीं कर पाए। बच्चों को घर पर ही रोक लिया है। आपके स्कूल की पढ़ाई फ्री है इसलिए ये पढ़ रहा है। आगे का भगवान जाने??”
यह सब बोलते बोलते उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे। वो बताने लगी,
“अब तो कुलदीप के पापा चलने फिरने में भी दिक्कत महसूस करते हैं। कमजोरी बहुत ज्यादा है। बिस्तर पर मल मूत्र कर देते हैं। बड़े बड़े डॉक्टर के पास इनको लेकर गये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
अब तो इनका इलाज हम घर पर ही देसी जड़ी बूटियों द्वारा ही करेंगे। डॉक्टर खूब पैसा बना रहे हैं, फायदा कुछ नही हुआ। खाने पीने के मोहताज और बन गए हैं। बड़ी दिक्कत है। कुलदीप से तो मैंने कहा था कि स्कूल पढ़ने चले जाना पर ये नही गया शायद इसका ही मन स्कूल जाने का ना होगा। कल से कुलदीप स्कूल आ जाएगा”
रमेश सर ने उनको सांत्वना दी और बोलें,
“धैर्य बनाएं रखें व सकारात्मक सोंचें। ईश्वर पर विश्वास रखें। वह आपके साथ कभी गलत नहीं करेंगे। भाई साहब बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे। चिंता मत कीजिए। कभी आपको मेरी जरूरत पड़े तो बता देना।”
रमेश सर अपने साथ लिफाफे में कुछ रुपए रख कर लाए थे और उन्होंने कुलदीप की मम्मी के हाथ में लिफाफा रखा, उनके कुछ बोलने से पहले ही घर से बाहर निकल गए। अगले दिन से कुलदीप स्कूल आने लगा था।
दो दिन बाद ही पता चला, कुलदीप के पिताजी नहीं रहे। रमेश सर को सुनकर बहुत अफसोस हुआ तथा भगवान जी पर बहुत गुस्सा आया। वे सोचने लगे कि भगवान अच्छे व गरीब लोगों का ही इम्तिहान क्यों लेते हैं?? उनको इतनी जल्दी ऊपर क्यों बुला लेते हैं?? वे ईश्वर से नाराज थे। जो हुआ था वो बड़ा गलत था।
कुलदीप के पिता की मृत्यु के 15 दिन बाद कुलदीप की मम्मी रमेश सर से मिलने स्कूल आई और उनसे बोलीं,
“सर आप बोल रहे थे कि कभी मेरी जरूरत पड़े तो याद करना।”
हां बताओ, क्या बात है??
“आपको तो पता है कुलदीप के तीनों बड़े भाई बहन सेमला इंटर कॉलेज में पढ़ते हैं। कुलदीप का बड़ा भाई नवी क्लास में है तथा दोनों बेटियां 10वीं व 12वीं क्लास में है। सेमला इंटर कॉलेज आठवीं कक्षा तक तो सरकारी है। उसके बाद फीस जमा करनी पड़ती है।
मेरी दोनों बेटियां पढ़ाई में बहुत अच्छी हैं। सोच रही हूं, किसी तरह दोनों लड़कियों को 12वीं पास करवा दूं। इसी सम्बन्ध में आज सेमला स्कूल गयी थी। वे तीनों बच्चों की, पिछले 4 महीनों की फीस व दोनों लड़कियों की बोर्ड एग्जाम फीस मांग रहे हैं। मैं सिर्फ बोर्ड परीक्षा की फीस ही दे सकती हूँ। क्या आप बच्चों की फीस को लेकर उनके स्कूल के प्रिंसिपल से बात कर सकते हैं?? जितनी फीस कम हो जाएगी उतनी ही मेरे लिए सहूलियत होगी।”
रमेश सर ने कहा,
“बिल्कुल, मैं कोशिश करता हूं।”
रमेश सर के पास सेमला इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल जी का नम्बर मोबाइल में सेव था। प्राथमिक विद्यालय बसेड़ा खुर्द के अधिकांश बच्चे कक्षा 5 उत्तीर्ण करके, सेमला इंटर कालेज में ही एडमिशन लेते थे। रमेश सर ने फोन करके कहा,
“नमस्कार सर, मैं प्राथमिक विद्यालय बसेड़ा खुर्द से रमेश बोल रहा हूँ। मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है और मुझे आपकी मदद भी चाहिए?? क्या ये समय ठीक रहेगा, आपसे बात करने के लिए???”
उधर से आवाज आई,
“जी सर बताइए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं।”
“मुझे आपसे देवकरण के बच्चों के बारे में बातचीत करनी है। जो आपके स्कूल में पढ़ते हैं। आप तो जानते ही हो कि कैंसर जैसी भयानक बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया है। उनकी पत्नी सभी बच्चों की फीस नहीं दे पाएगी। उनकी आर्थिक स्थिति बड़ी खराब है। क्या आप उनके बच्चों की फीस माफ कर सकते हैं। बोर्ड परीक्षा फीस वे पूरी देने को तैयार है।”
उन्होंने बोला कि वह फीस माफ नहीं कर सकते हैं, उसी से तो वो बाकी प्राइवेट टीचर्स को वेतन देते हैं।
रमेश सर ने उनसे पूछा,
“देवकरण जी के बच्चें पढ़ाई में कैसे हैं??”
“उनके बच्चे पढ़ाई में तो होशियार हैं। उनकी बड़ी लड़की ने तो 11वीं कक्षा में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किये थे। छोटी वाली बच्ची भी पढ़ाई में अच्छी है।”
“अभी आपने बोला कि उनके बच्चे होशियार हैं। जब बच्चे पढ़ाई में अच्छे हैं, तो एग्जाम में उनका बैठना तो आपके लिए बड़ा फायदेमंद है। अगर वे अच्छे नंबर से पास होते हैं या आपका स्कूल टॉप करते हैं तो आपका और आपके स्कूल का नाम, आसपास के क्षेत्र में होगा। आपके स्कूल के नामांकन में भी बढ़ोतरी होगी। अगर आपकी नजर में पैसा ही सब कुछ है तो आप मुझे बताओ कि उनकी अब तक की कितनी फीस बकाया है, मैं पूरी फीस चुका दूंगा।”
वे रमेश सर की बातें सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोलें,
“अरे सर, आप हमें शर्मिंदा मत कीजिए। आपकी तारीफ़ तो बहुत सुनी थी। मिलने का भी मन था। पर आज आपसे बात हुई तो आपके विचार जानकर बड़ा अच्छा लगा। जब आप गैर होकर उनके लिए इतना सब कुछ कर रहे हैं, करने को तैयार हैं, तो हम उनके लिए क्यों नहीं कर सकते। कल से आप बच्चों को स्कूल भेजिए। फीस की चिंता आप मत कीजिए। हम बच्चों को एक्स्ट्रा क्लास के साथ-साथ ट्यूशन भी फ्री में पढ़ाएंगे।”
रमेश सर ने उनको धन्यवाद देते हुए बोला,
“सर आप एक नेक व बेहतरीन इंसान हैं। अगर सभी लोग आपकी तरह सोचें, शिक्षा को व्यवसाय ना बनाएं तो कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित ना रहे। ईश्वर आप पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें। इन बच्चों की मदद का सिला, एक दिन ईश्वर आपको जरूर देगा।”
अगले दिन से तीनों बच्चे सेमला स्कूल जाने लगे थे। ससमय बोर्ड परीक्षा हुई। जब रिजल्ट आया तो दोनों बच्चियों ने अपनी अपनी कक्षा में सर्वाधिक नम्बर प्राप्त करके स्कूल टॉप किया था। उधर कुलदीप का भी चयन विद्याज्ञान में हो गया था। तीनों बच्चों की सफलता से गदगद, रमेश सर मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रहे थे।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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