स्वयंसिद्धा | Kahani Swayamsidha
जीत ने जैसे ही घर का ताला खोल घर मे प्रवेश कदम रखा कि मोहल्ले की औरतों ने भी उसके साथ प्रवेश किया। वे सब उससे उसका हाल चाल पूछ रही थीं और वह बड़े संयत ढंग से उन सभी के प्रश्नों का उत्तर देती जा रही थी।
लगभग दो घण्टो के बाद भीड़ छंटनी शुरू ही गई और अब ठीक आठ बजे वह घर मे अकेली रह गयी थी । थोड़ी देर बाद वह छत पर गयी और निम्मो , बबली और टीनू को बारी बारी से आवाज दे कर बुलाने लगी । आवाज सुन कर तीनो लड़कियां भागी भागी छत आयी और रंजीत को चिपट कर –
“मम्मी ..मम्मी.. आप कहाँ चली गयी थी ? और पापा तो ..” कह कर चीखने लगी । जैसे ही ” पापा ” शब्द सुना तो जीत ने उनके मुँह पर हाथ रख चुप कर दिया। ” पापा तो चले गए हमे छोड़ कर । अब उनके बिना जीना है । ”
कहते हुए तीनो बेटियों को गले लगा लिया पर आँखों मे कठोरता छा गयी थी ।
” चन्दो कहाँ है ?” कहते हुए जीत का पूरा शरीर कांप उठा । लड़कियों को अलग करते हुए उसने दाँत भीच कर कहा .
” वह शन्नो आंटी के घर हैं”
तीनो लड़कियों ने एक साथ कहा तो जीत का चेहरा सामान्य हो गया । वह जैसे ही दरवाजे की ओर मुड़ी तो सामने से आँखों मे दहशत समाये नीची गर्दन किये चन्दो शन्नो के साथ आती दिखाई दी ।
” आ भैन आ जा ।”
कहते हुए जीत ने शन्नो का हाथ पकड़ा और खटोले पर बैठाते हुए कहा
” तूने उससे बात कर ली क्या ?”
” हाँ मैंने बात कर ली । वे राजी भी हैं । पर शादी इसी महीने मांग रहे हैं । पर तू तो….अब ,तैसे हैं..”
बीच मे ही उसके मुंह पर हाथ रख चुप करा दिया और बोली
” चुप कर । मैं तैयार हूं ”
” अरी मुई, तुझे तो लोक लिहाज भी नही रही ”
शन्नो ने झिड़कते हुए कहा ।
” लोक लिहाज तो तभी होगी जब मेरा मुँह काला होगा । मुझे भी अब कोई गम नही । अभी दो महीने हैं मेरे पास । जमानत का समय खत्म हो जाएगा तो कुछ नही कर पाऊँगी । तेरे हाथ जोड़ती हूं भैंन । तू इसके हाथ पीले करा दे ”
जीत ने पिघलते हुए कहा । वह उठ कर अंदर चली गयी और कपड़े से ढका थाल हाथों में पकड़ाते हुए बोली –
” जा उसे रोक आ मौसी बन कर ।”
शन्नो आँखे फाडे जीत की ओर देखती रह गयी ।उसके हाथ यंत्रवत उठे और थाल थाम लिया ।शन्नो की मुद्रा कठोर हो चली । वह एक झटके से उठी और बाहर निकल गयी । उसके जाते ही जीत की आँखों से आँसू झड़ पड़े और चन्दो भी गाय सी माँ के कंधों पर झुक चुपचाप उसका साथ देती रही । अचानक जीत ने मुँह उठाया , आँसू पौछे और नॉर्मल होते हुए बेटियों से कहा —
” क्यो स्यापा पा रखा है ? जो हुआ , ठीक हुआ । जो अपना अपना काम करो ”
जीत जल्दी से उठी और रसोई की ओर मुड़ गयी । उसे देख बेटियाँ भी पीछे पीछे हो ली । चन्दो ने के गिलास में पानी भरा और जीत को थमा दिया । फिर उसे कमरे ला पलँग पर बैठा खुद खाना बनाने में व्यस्त हो गयी ।
अब जीत संयत हो चली थी । वह उठी और रुई के फाहे को मरोड़ कर बत्ती बना दीपक में घी डाल भगवान के सामने दीपक जलाने लगी । जैसे ही माचिस की तिल्ली ने जलती जलती अपने आखिरी लपट से उसे छुआ तो जैसे वह नींद से जागी और जोर जोर से हँसने लगी
” ऐसे ही जलाया था मैंने तुम्हें तुम्हरी चिता पर ‘”, कहते कहते उसकी मुट्ठियाँ भीच गई , दाँत भीच गए और वह धम्म से जमीन पर गिर पड़ी । आवाज सुन कर चन्दो भागी भागी आयी और उठाने की कोशिश करने लगी । जीत ने सम्हलते हुए कहा
” मैं ठीक हूँ ।बस थोड़ा चक्कर आ गया था ।तू जा अपना काम कर “.
जीत उठ कर चारपाई पर बैठ गयी और कहीं खो सी गयी । शन्नो की आवाज ने उसका ध्यान तोड़ा ।उसे देखते ही जीत में पूरी ताकत आ गयी ।वह उठी और उसकी ओर लपकी
” क्या रोक आई ?”
” हाँ ,रोक आई और अबवे यदि हप्ते में शादी चाहते है । पांच आदमी आयेंगे और लाडो के फेरे लिवा कर ले जाएंगे । तेरे हालात के कारण वे कोई शोरशराबा नही करना चाहते । सब मान गए है । ”
शन्नो ने विश्वस्त हो कर कहा और अपन कंधे का सहारा से उसे सहलाती रही ।
जीत ब्याह की तैयारियों में जुट गई एयर वीरवार के आखिरी दिन ने कब आ कर दस्तक दे डाली , पता नही चला । चन्दो के ससुराल से पांच आदमी और चार औरतों की बारात ले आये और नाश्ते पानी के बाद ही फेरे फिरवा कर चार घण्टे बाद ही विदा हो कर अपने ससुराल पहुच गयी ।
चन्दो सही ठिकाने पर पहुच गईं और जीत एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई । अब जीत बहुत राहत महसूस कर रही थी । अतः वह रात भर निश्चिंत हो कर सोई । सवेरे उठी तो बेटी व दामाद माँ के घर पग फेरा डालने की बात दिमाग मे आते ही वह बिजली कि तरह उठी और काम मे जुट गई ।
आठ बजते ही चन्दो तथा दामाद के क़दमो ने जीत की चौखट पर दस्तक दे दी । जीत बड़े चाव से चौखट से बेटी व दामाद की लिवा लाई और दोनों को गले से लगा कमरे में कर पलँग पर बैठा दिया । फिर दामाद कर सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो कर कहा –
“बेटा, हमारा भी ख्याल तुम्हें ही रखना है । ”
दामाद ने सुना तो सकते में आ गया । उसका मुँह खुला का खुला रह गया तो
” आपने ऐसा क्यों किया बीजी?”
वह दबी जबान से अकस्मात पूछ बैठा ।
” यह मैं अदालत को बताऊंगी ”
कठोर से कठोरतर हो कर कहा और दाँत काटती हुई एक ही झटके में उठ रसोई की तरफ चली गई । सबकुछ पीछे दाल जीत दामाद की आवभगत में लग गयी । उसने बड़े प्यार स्व कहना खिलाया । लेन देन को रस्म की और दोनों को खुशी खुशी विदा कर दिया । मौहल्ले की सभी औरते उसके अदम्य साहस व सन्तुलन को देख हैरान थी ।
जमानत का समय पूरा होने में अब केवल एकहफ्ता रह गया था । जीत को जैसे कुछ याद आया । उसने अपनी तीनो बेटियो को शन्नो के घर छोड़ा और स्वयं अपने मायके अम्बाला चली गई । बाहर सिपाहियों को खड़ा कर जैसे ही घर मे पैर खा कि–
” लो जी कर लो दर्शन । आ गयी नायका जी ”
जैसे शब्द कानों में पड़े तो पाव जहाँ के तहाँ उलझ कर रह गए । ये आवाज उसकी भाभी की थी । भाई ने मुँह उठा कर देखा तो खिसिया सा हो कर रह गया । बूढ़ी माँ इसकी तरफलपकी और बाँह पकड़ कर –
” आजा पुत्तर ! ए तो एवई केन्दी रैंदी है । ” कहते हुए चारपाई तक ले गयी । इतने में भाई पानी का गिलास ले कर आया और पकड़ाते हुए बोला –
” कैसी है बीबी ।”
हाथ से गिलास लेते हुए वह माँ से बोली –
” बिजी , हुण तुसी साड्डे कोल रओगे । असि त्वान्नु लैण वास्ते हौ । अपणे तुसी दो चार लत्ते कोल लै ,ते चल पै साड्डे नाल । हुण तिन्न बजे ने ।ठीक चार बजे गद्दी टेशन ते जावागी ”
कहा और माँ के कपड़े लत्ते ढूंढ ढूंढ कर एक थैले में रखने लगी ।
” पर पुत्तर मैं तो…”
माँ के शब्दों स्व ध्यान टूटा तो थैला एक ओर फेक सीधी माँ के सामने आ खड़ी हुई और कड़क आँखे फैला कर बोली –
” इक गल कर ।त्वान्नू चलणा कि नई ?”
“हाँ ..हाँ.. चलणा है ।तू गुस्सा क्यूँ करदी है । बिरजो पुत्तर मैन्नू इक गिलास पांणी प्या दे । माँ ने कहा ।
” तो छेत्ति कर ,नाल सिपाही है ,बार खड़ा कर राख्या ”
हड़बड़ा के जीत ने कहा और फिर कपड़े समेटने लग गई और माँ तैयार होने में । बिरजो पानी का गिलास लाई और माँ को पकड़ाते हए –
“कैसी हो बीबी ” कहा ।
तो उत्तर में जीत ने सख्त निगाह से देखा और गर्दन हिला दी और माँ का हाथ पकड़ सीधी बाहर निकल गयी । बिरजो के गाल पर जैसे कोई करारा थप्पड़ पड़ा । वह जड़ सी हो खड़ी देखती रह गयी ।
जीत और माँ रिक्शा से उतर ताला खोल घर मे दाखिल हुई । चौक में पड़ी चारपाई पर माँ को बैठा सीधी छत पर पहुँची और अपनी तीनो बेटियो को आवाज दे दे कर बुलाने लगी । आवाज सुनते ही तीनो बेटियाँ घर आई और नानी को लिपट रो पड़ी –
” नानी…. पापा ….”
टीनू के मुँह से निकले शब्द सुन कर जीत चोट खाई साँपिन की तरह पलटी और उँगली दिखाते हुए लगभग गरज उठी –
” चुप ,खबरदार ,जो एकशब्द भी मुँह से निकाला
जीत के तेवर देख बेटियाँ जहाँ की तहाँ थम गई । निम्मो रसोई में गई और नानी के लिए पानी ले आई ।बबली नानी को छोड़ चाय बनाने में व्यस्त हो गयो । टीनू नानी को गोद मे “पापा.. पापा..” धीरे धीरे कहती रही ।
रात हो गयी थी । नानी को आराम की जरूरत थी ।
निम्मो और बबली बिस्तर बिछाने में जुट गई । निम्मो और बबली एक बिस्तर पर टीनू और नानी फोल्डिंग पर और जीत खटोले पर सो गई । सभी लगभग गहरी नींद में सोए थे । अचानक जीत की सिसकियों से नानी नींद खुल गयी । नानी ने अंधेरे में अपना हाथ बढ़ाया और जीत के सिर पर रख दिया फिर भर्राए गले से बोली –
” पुत्तर ठंड रख । हुण रोण सै कि फैदा ।चुप्प कर पुत्तर चुप्प कर ।हुणे ओ आण वाला नई । ”
नानी का शब्द सुन कर जीत की सिसकियाँ बन्द हो गयी । नानी पता नही कब सोइ ? सुबह जब जीत उठी तो वह हल्का महसूस कर रही थी । उसने स्नान के बाद नाश्ता किया और मां के पास बैठ कर कहने लगी -“मैं बीजी ,तुम्हे इसलिए लाई हूँ कि मेरे जानेमें केवल तीन दिन रह गए है ।
ठीक तीन दिन बाद मुझे जाना होगा । केस के निपटारे तक और शायद उसके बाद भी तुम्हे यहीं रहना होगा इन तीनो नातियों के साथ । इन तीनो को इज्जत के साथ इनके घर भी तुझे ही पहुँचाना होगा । मेरा कुछ पता नही ”
कहते कहते उसकी आँखों की कोरो से पानी बह चला । वह झटके से उठी और कमरे में जा कर बैठ गई । माँ चुपचाप उठी और जीत के पीछे पीछे हो ली । जीत के पास बैठ कर उसका सिर पकड़ा और छाती से लगाती हुई बोली –
” हुण क्यो रोंदी है । पैल्ले तो उनानू मार दित्ता ।हुण पछताण दा कि फ़ैदा ?'” नानी कह बैठी ।
माँ के शब्दों ने जैसे उसके कानों में सीसा उड़ेल दिया । वह माँ के हाथों से अपना सिर छुड़ा बिजली की तरह चमकते हुए छिटक अलग हो गयी और साँपिन की तरह फुफकारते हुए बोली –
” तो क्या करती ? हो जाने देती बड़ी नातिन को तेरे दामाद की हवस का शिकार ? बन जाने देती उसे अपनी सौत ? अभी तो एक पर ही नजर पड़ी थी । अगर जिंदा रहता तेरी चारो नातिनों को खराब करता । मैंने बेटियों को बचाने के लिए उसे ही निपटा दिया ”
कहा और अपना चेहरा हाथों में छिपा सिसक उठी ।
जीत की बात सुन कर माँ को जैसे लकवा मार गया ।
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र