कर्ण एक ऐसा महायोद्धा महादानी जो उसकी स्वयं की गलती नहीं होने पर भी जीवन भर अपमानित होता रहा। आखिर उसकी गलती ही क्या थी? जो जन्म के साथ ही उसकी मां ने उसे त्याग दिया ।शिक्षा प्राप्त करने गया तो वास्तविकता जानने पर गुरु ने समय पर सीखी हुई विद्या न याद होने का श्राप दे दिया।

उसकी मां स्वयं उसके लिए काल बन गई। स्वयं भगवान कृष्ण भी उसको छल द्वारा मरवा डालें। आखिर उस बालक की क्या गलती थी। मां द्वारा की गई गलती की सजा वह जीवन भर भोगता रहा।
कहा जाता है कि माता कुंती जब वह कुंवारी ही थी तो सूर्य के साथ संबंधों से उसका जन्म हुआ था। लोक लाज के भय से उन्होंने उसे नदी में फेंक दिया।

जहां पर राधे नामक व्यक्ति ने उन्हें देखकर उसका पालन पोषण किया। बचपन से ही वह बहुत तेजस्वी था। उसे कोई भी शिक्षा नहीं देना चाहता था। एक बार वह भगवान परशुराम के पास शिक्षा ग्रहण करने गया जहां उसने अपनी वास्तविकता छिपा लिया था। एक बार कोई जहरीला जोकर टाइप का कीड़ा उसकी जांघ में काटने लगा।

उस समय परशुराम का सिर उसकी गोद में था और वह आराम कर रहे थे। उसने सोचा कि गुरुदेव की निद्रा में बांधा न हो इसलिए दर्द को सहता रहा।जब कीड़े के काटने का खून परशुराम को स्पर्श किया तो वो जाग गए। वास्तविक स्थित जानने पर उसे श्राप दे दिया।

ऐसे ही द्रोपदी का जब स्वयंवर हो रहा था तो उसे अपमानित किया गया। जहां पर दुर्योधन उसे अंग देश का राजा बना देता है। राजपुत्र होते हुए भी उसे कभी राज्य सुख नहीं मिला। जिंदगी भर वह अपमानित होता रहा।

हमारी गलतियों की सजा कभी-कभी बच्चों को जिंदगी भर भोगना पड़ता है। जिस प्रकार से कर्ण जैसे लावारिस बच्चे को भोगना पड़ा था। कर्ण कहा जाता है महान दानवीर भी था। उसकी दान शीलता का फायदा स्वयं उसकी मां कुंती और अपने को भगवान कहने वाले कृष्ण ने भी उठाया। स्वयं माता कुंती एवं कृष्ण ने उसे धोखा दिया।

अंत में उसकी मृत्यु भी जब महाभारत युद्ध में उसका पहिया नीचे धंस गया था। वह निकालना चाहता था तो धोखे से मार दिया गया। उसका रथ संचालन करने वाला शल्य भी उसे सदैव हथोत्साहित करता रहा।

आज भी हजारों बच्चे ऐसे ही अपने मां-बाप की गलतियों की सजा भुगत रहें हैं। ऐसे बच्चों का जीवन नर्क से भी बदतर हो जाता है। जब हम महाभारत पढ़ते हैं तो कर्ण के जीवन को देखकर बड़ी आत्मग्लानि होती है। कैसे एक राजमाता का पुत्र होते हुए भी जिंदगी भर डर-डर की ठोकरे खाता रहा। जिंदगी भर अपमान के घूंट पीता रहा। उसकी मां तो राज्य सुख भोगती रहीं और कर्ण का जीवन, जीवन भर अभिषिक्त बना रहा।

आखिर कर्ण आज भी पूछ रहा है और वह आने वाले पीढ़ियों से पूछता रहेगा कि आखिर उसकी क्या गलती थी जो उसे जिंदगी भर अपमानित होकर के जीना पड़ा? आखिर कौन देगा उसका उत्तर? उसकी नर्क जैसे जिंदगी का जिम्मेदार आखिर कौन है?

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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