कलयुग | Kalyug par Bhojpuri Kavita
” कलयुग “
( Kalyug )
धधक-धधक अब धधक रहल बा
चिंगारी अब भड़क रहल बा
लोगन में बा फुटल गुस्सा
हर जान अब तड़प रहल बा
कहीं आवाज अउर कहीं धुलाई
धरती पे अब लालिमा छाइल
जान प्यारा हऽ सबके भाई
फिर काहे बा गुस्सा आइल
कहीं ना बा कवनो लेखा जोखा
भाई के ना भाई होता
कोख भी अब बेचल जाता
ई जग में काहे अ्इसन होता
केहू चोरावे बेटा-बेटी
केहू सेकेला मौत के रोटी
हर घर में अब दुख भर आइल
कइसन बड़का कलयुग आइल ।
कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
यह भी पढ़ें:-