
धन्य हैं ” किसान “
( Dhanya hai kisan)
धरती के पालक मित्र किसान
तुम से सुसज्जित खेत खलियान
गांव में ही बसते हैं जग के प्राण,
तुमको हम करे हृदय से प्रणाम ।।
गांव की धरती होती उपजाऊ,
हीरा, मोती उगले मिटी भी हमारी
जब पसीना बहाएं हमारे किसान
तब मिलती सबको अन्न की खान ।।
बागों में देखो फरने लगे है अब आम
सरसो के खेत लगे जैसे पहने हो कोई
धानी चुनरिया मतवाली सी कोई नार ,
मन मोहित कर डालें खेत पर उगी धान
जब गेहूं की फसल लहराएं,
मकई के खेतों में सुघड़ बाल,
सुंदर बड़े ही लगते ये सारे हमको
साग सब्जी से भरे खेत खलियान ।।
कड़ी मेहनत करते हैं हमारे किसान
सर्दी गर्मी नही देखते अन्य दाता ये,
ट्रैक्टर ट्राली हाथ गाड़ी सब कुछ ले,
रात दिन लगे रहते है हमारे किसान ।।
सुन्दरता का कहां कहां करें बखान,
कृषकों की मेहनत के रंगीन उपहार।
लहलाते खेत हमारे यहां स्वर्ण समान
धन्य हमारे देश की मिट्टी के किसान ।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
यह भी पढ़ें :-