करे है उससे फ़ासले हम नहीं | Ghazal
करे है उससे फ़ासले हम नहीं
( Kare hai usse faasle hum nahi )
करे है उससे फ़ासिले हम नहीं
दग़ा प्यार में ही करे हम नहीं
चुनी है मुहब्बत की राहे हमने
नफ़रत की राहों पर चले हम नहीं
बेअदबी करी घर बुलाकर अपनें
उसके रु ब रु फ़िर हुये हम नहीं
ठुकराया सगाई का रिश्ता जब से
नगर में उसके फ़िर गये हम नहीं
नाता तोड़ गया है वही जब से
उसी से कभी फ़िर मिले हम नहीं
दग़ाबाज़ की तोड़ दी दोस्ती को
कभी साथ उसके रहे हम नहीं