Katha Laut Aao na Papa

लौट आओ ना पापा | Katha Laut Aao na Papa

नेहा का कोई संसार में अपना सा लगता था तो वह थे – उसके पापा! उसके पापा भी उसे बहुत चाहते थे। जब उन्हें कोई जरूरत होती तो नेहा को ही बुलाया करते थे। वैसे नेहा की दो और बहने हैं एक बड़ी जिसकी शादी हो चुकी है उसके 1 वर्ष का है छोटा सा बाबू भी है। एक उससे छोटी है जो अभी हाई स्कूल की परीक्षा दे रही है । एक बड़ा भाई है जो पढ़ाई छोड़कर घर की जिम्मेदारी को संभाल रहा है।

इसके अलावा उसके घर में मम्मी पापा दादी आदि हैं। उसकी मां बहुत ही संस्कारी है ।जो देश दुनियादारी से मुक्त अपने परिवार को ही सर्वस्व मानती हैं। यही कारण है उसका प्रभाव बच्चों में भी वैसा ही पड़ा है।

वह अपने पापा की चहेती बिटिया है । वह अपने पापा का दाहिना हाथ है। जब भी उसके पापा को कोई जरूरत होती तो वह उसे ही पुकारते। उसके अन्य भाई बहनों को कम ही बुलाया करते। जिसके कारण उसके अन्य भाई-बहन उसे कभी-कभी उलाहना भी दिया करते कि -” देखो! यह है पापा की दुलारी बिटियां। पापा तो जैसे हम सबको भूल गये हों।जब भी पापा को कोई काम होता है नेहा को ही बुलाते हैं।”

एक दिन उसकी छोटी बहन ने कहा-” नेहा ! पापा केवल तुम्हें ही स्नेह करते हैं । हमें नहीं करते ।हम छोटी हैं फिर भी हमें नहीं बुलाते । जब हम कोई चीज लाने को कहते हैं तो आजकल कर देते हैं लेकिन जब तुम कहती हो तो तुरंत ला देते हैं।”

नेहा ने कहा-” ऐसा नहीं है छोटी ! पापा बहुत अच्छे इन्सान है। पापा जल्दी ठीक हो जाए इसलिए हम सबको पापा की खूब सेवा करनी चाहिए।”

फिर उसकी छोटी बहन ने कुछ नहीं कहा। बात दरअसल यह थी कि उसके पापा कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। बीमारी थी कि ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी। एक बार उसके पापा बहुत बीमार हो गए । उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। नेहा दिन रात भगवान से प्रार्थना करती रहतीं थीं कि उसके पापा जल्दी ठीक हो जाएं। लगता है भगवान ने उसकी पुकार को सुन लिया हो।उसके पापा स्वस्थ होकर घर आ गए।

एक दिन उसने अपने पापा से कहा -” पापा आप शराब ना पिया करो। शराब आपको बहुत नुकसान करती है। आप कसम खाओ कि अब आप शराब नहीं पियोगे।”

उसके पापा को लगा कि बिटिया रानी ने तो हमें फंसा लिया है। उन्होंने आव देखा ना ताव गिलास उठाकर फेंक दिया । और बोलें -” बिटिया रानी ! कसम से आज से शराब नहीं पियूंगा। छोड़ दिया तो छोड़ दिया। तू मुझे अब कभी शराब मुंह से लगाते नहीं देखेगी।”

नेहा ने कहा -” पापा ऐसा तो आप हर बार कहते हो । थोड़ा सा आराम होता है तो पीने लगते हो। पिछली बार भी आपने कसम खाई थी। थोड़े दिनों तक छोड़ भी दिया । लेकिन जब आपकी तबीयत ठीक हुई फिर पीने लगे।”
उसके पापा ने कहा -” अरे बिटिया ! जब कहां ना ! छोड़ दिया तो छोड़ दिया । अब ऐसा नहीं होगा । अब कुछ भी हो जाए नहीं पियूंगा तो नहीं पियूंगा।”

बात यह थी उसके पिताजी शराब पीते थे जिसके कारण उनकी किडनी डैमेज हो गई थी। पूरे शरीर में सूजन आ गई थी। इसी बीच उन्हें शुगर भी हो गई । शुगर ज्यादा बढ़ने पर उन्हें इंसुलिन लेना पड़ता था। धीरे-धीरे रोगों ने उन पर कब्जा जमा लिया था । शरीर जब कमजोर हो जाता है तो नित्य नए-नए बीमारियां होने लगती हैं। ऐसे में एक बीमारी ठीक हुई नहीं की दूसरी हों जातीं हैं। धीरे-धीरे जिसके कारण मनुष्य का शरीर खोखला हो जाता है।

नेहा के पापा ने शराब पीना तो छोड़ दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी । इस शराब में न जाने कितनों के घर उजाड़े है और कितनों का उजाड़ेगी । पहले कोई शौक बस शराब पीता है धीरे-धीरे शराब उसे पीने लगतीं हैं।

रोग बढ़ने के कारण उसके पापा का शरीर सूखकर कांटा हो गया था। पूरे शरीर में सूजन हो गई। रोग बढ़ने पर फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। लेकिन रोग कम होने का नाम नहीं ले रहा था। डॉक्टर को तो पैसा बनाना होता है । वह जवाब भी नहीं दे रहे थे कि मैं ठीक नहीं कर पाऊंगा । इन्हें और कहीं दिखाइए।

एक बार उसके पापा की बुआ उन्हें मुंबई लेकर गई । साथ में उसकी मां भी थी लेकिन उनका मन वहां नहीं लग रहा था। वह बार-बार लौट चलने के लिए जिद करते और वह घर लौट भी आए। वहां से आने के बाद वह कुछ दिनों तक आराम से रहे । फिर अचानक उनकी तबीयत और बिगड़ गई।

अंत में उन्हें लखनऊ के पीजीआई में ले जाया गया लेकिन वो भर्ती भी नहीं हो पाए थे कि देर रात उनके प्राण पखेरू उड़ गए।
नेहा की मां का तो संसार उड़ गया। नेहा के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। पापा पापा कहते हुए वह बेहोश हो गई । जब भी होश में आती उसके मुंह से पापा ही निकलता। नेहा को लगता है! उसको बिटिया रानी करने वाले उसके पापा तो अब चले गए आप कौन उसे बुलाएंगे? कौन अब मेरी डोली सजाएगा।

पापा के मरने के बाद नेहा अक्सर उदास रहती । उसकी किसी से बात करने का मन नहीं करता था। जिंदगी में अक्सर मनुष्य सोचता कुछ और है हो जाता कुछ और है। आखिर उसके पापा की उम्र ही कितनी थी । अभी तो वह 50 वर्ष के भी नहीं हुए थे । यह कोई मरने की उम्र है। उसकी परदादी दादा तो अभी पिछले वर्षों तक जीवित थे।

कहते हैं जिन बच्चों के सर से पिता का साया उठ जाता है वह समय से पहले जिम्मेदार हो जाते हैं। नेहा को भी लगा घर में बैठे रहने से काम नहीं चलेगा। उसका भाई तो काम कर रहा था तो उसने भी सोचा हमें भी चाहिए कुछ करू।
फिर उसने भी एक बैंक में काम शुरू कर दिया ।

आज भी वह अपने पापा को बहुत मिस करती है। वह सोचती है क्या यदि पापा होते तो उसे ऐसे काम करने देते। अपने पापा के उसे बहुत याद आती है तो आंसु सहज में झरने लगते हैं। नियत को नहीं बदला जा सकता। अब जिंदगी में जो दुख के दिन आए हैं तो उसे झेलने पड़ेंगे।

अक्सर जब वह रात्रि में सोते हुए जाग जाती तो उसे लगता कि उसके पापा उसे बुला रहे हैं। नेहा कहां हो बिटिया ! जरा पानी तो लाना और वह पानी लेकर जाती तब तक आंख खुल जाती।

उसे लगता है सब सपना है। पापा अब लौट कर नहीं आ सकते हैं। उसके पापा एक ऐसे देश में जा चुके हैं जहां जाने के बाद कोई नहीं लौट कर आता नहीं है। फिर भी उसकी मन है कि मानता नहीं वह अक्सर कहती है – लौट आओ ना पापा!

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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