Kavita Laawaris Deh
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उसकी बिंदिया

( Uski Bindiya )

 

उसकी बिंदिया
दरवाजे पर झांकती अबोध किरण थी
जो तुलसी को सांझ –ढ़ले हर्षा सकती थी
कि
वह दीपशिखा की तरह झिलमिला रही है .

उसकी चूड़ियां
दरवाजे पर उठती मासूम आहट थी
जो रसोई में से भी साफ सुनी जा सकती थी
कि
वह चबूतरे पर खिलखिला रही है .

उसकी पायल
दरवाजे पर गूंजती कोमल ध्वनि थी
जो बैठक के कमरे को चहका सकती थी
कि
वह मिसरी का रस घुलामिला रही है .

उसका आंचल
दरवाजे पर फैलता इंद्रधनुषी साया था
जो घर-भर यक़ीनन ठंडक ला सकता था
कि
वह मयूर- नृत्य करके किलबिला रही है .

परंतु
यह पावन सौंदर्य
दोस्तों ! किसी की नज़र चढ़ गया .

कि आज बड़े दुःख के साथ
बताना पड़ रहा है —

न बिंदिया न चूड़ियां न पायल न आंचल
उसकी लावारिस देह के ऊपर
ये सब सिंगार नहीं, जख्मों और ब्लेड से काटने के निशान थे
कल रात
पुल के नीचे
उसका गैंगरेप हुआ था !

सुरेश बंजारा
(कवि व्यंग्य गज़लकार)
गोंदिया. महाराष्ट्र

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