आधुनिकता | Aadhunikta
आधुनिकता
( Aadhunikta )
चाँद की हो गई, दुनिया दीवानी ।
तारों में बसने लगे, शहरे हमारी ।।
ख्वाहिश पूरी हुई , इंसानो की ।
दुनिया छोड़ दी,घर बनाने के लिए ।।
जल हो गई, प्रदूषित भारी ।
ज़हर बन गई, प्राणवायु ।।
जिए तो जिए कैसे इंसान ।
नरक बन गई, धरती हमारी ।।
तकनीकी मे हो गई, विकास भारी ।
परमाणु बन गई, हथियार हमारी ।।
पलक झपकते खत्म हो जाएगी दुनिया ।
बनाया इंसान ने खुद को भगवान ।।
जीव जंतु हो गई , विलुप्त भारी ।
जीवन जीना हो गई, दुभर हमारी ।।
दोहन किया प्राकृतिक संसाधन का ।
बंजर बन गई, प्रकृति हमारी ।।