आधुनिकता

आधुनिकता | Aadhunikta

आधुनिकता

( Aadhunikta )

 

चाँद की हो गई, दुनिया दीवानी ।
तारों में बसने लगे, शहरे हमारी ।।
ख्वाहिश  पूरी  हुई , इंसानो  की ।
दुनिया छोड़ दी,घर बनाने के लिए ।।

 

जल हो गई, प्रदूषित भारी ।
ज़हर  बन  गई, प्राणवायु ।।
जिए  तो  जिए कैसे इंसान ।
नरक बन गई, धरती हमारी ।।

तकनीकी मे हो गई, विकास भारी ।
परमाणु  बन गई, हथियार हमारी ।।
पलक झपकते खत्म हो जाएगी दुनिया ।
बनाया  इंसान  ने खुद को भगवान ।।

जीव  जंतु  हो  गई , विलुप्त भारी ।
जीवन जीना हो गई, दुभर हमारी ।।
दोहन किया प्राकृतिक संसाधन का ।
बंजर  बन  गई,  प्रकृति  हमारी ।।

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कवि : खिलेश कुमार बंजारे
धमतरी ( छत्तीसगढ़ )

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