आज भी बेटियाँ
( Aaj Bhi Betiyan )
सिल बट्टा घिसती है,
खुद उसमे पिसती है,
बूँद बूँद सी रिसती है,
मगर फिर भी हँसती,
आज भी बेटियाँ गाँव शहर में….!!
नाज़ो से पलती है,
चूल्हे में जलती है,
मनचाही ढलती है,
फिर भी ये खलती है,
आज भी बेटियाँ गाँव शहर में ….!!
कच्ची नींद सोती है,
परिवार को ढोती है,
चुप छुप वो रोती है,
फिर भी खुशी बोती है,
आज भी बेटियाँ गाँव शहर में …!!
घर छोड़ वो आती है,
घर दूजा बसाती है,
हक पूरा न पाती है,
फिर भी न जताती है,
आज भी बेटियाँ गाँव शहर में ….!!
मात की जिगर जान है
पिता की रही शान है
हर इक घर की आन है
फिर भी ये परेशान है,
आज भी बेटियाँ गाँव शहर में ….!!
डी के निवातिया