बारिश में सीता | Kavita Baarish me Sita
बारिश में सीता
( Baarish me Sita )
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
दुखिया कौन है आज,सीता सी?
पति चरण छाया से कोसों दूर।
हो रही है व्थथा से चूर-चूर।
हितैषी नहीं है,सब बेगाना।
कैसे, दूर संदेश पहुँचाना ?
ऋतु ने भी दुश्मनी मोल ले ली।
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
महलों की रानी वृक्ष के नीचे।
मना रही “गौरी” अँखियाँ मींचे।
घनन-घनन गरज रहे हैं बादल।
युगों सा बित रहा एक- एक पल।
आस की सब राहे बंद कर दी।
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
दुबक कर बैठ गए सभी,घर में।
विपदा छाई सीता के सर में।
खुली आसमाँ,न ही है दीवार।
रोती ,विलखती,मानती न हार।
दर्द का जहर जानकी रही पी।
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
विधाता ने किया है अंधकार।
हो रही बरसात मूसलाधार।
आशा की ज्योति किरण बुझा दिए।
विश्वास अटूट, आएंगे पिए।
सीता जानती ,किस विधि रही जी।
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
मत आए जीवन में ऐसा दिन।
रहना नहीं पड़े अपनों के बिन।
कोई सीता चुराई न जाए।
रावणत्व भाव किसी में न आए।
करुणामयी स्थिति में जानकी थी।
हो गई शुरू झड़ी बरसात की।
रचयिता – श्रीमती सुमा मण्डल
वार्ड क्रमांक 14 पी व्ही 116
नगर पंचायत पखांजूर
जिला कांकेर छत्तीसगढ़