मानव तन पाकर भजा न प्रभु को
मानव तन पाकर भजा न प्रभु को
मानव तन पा करके,
भजा न प्रभु को जो।
यह अनमोल जीवन अपना,
वृथा ही दिया उसने खो।
मानव तन पा करके,
भजा न प्रभु को जो।
गया ठगा द्वारा ठगिनी माया के।
झूठा रंग चढ़ाया अपनी काया पे।
छोड़ फूल बीज कांटे का, लिया बो जो।
यह अनमोल जीवन अपना,
वृथा ही दिया उसने खो।
मानव तन पा करके,
भजा न प्रभु को जो।
हरि तारणहार, सब सुखों के आधार।
है इस मानव जनम के सार।
छोड़ हरि को, गया संसार का जो हो।
यह अनमोल जीवन अपना,
वृथा ही दिया उसने खो।
मानव तन पा करके,
भजा न प्रभु को जो।
भेजा है प्रभु ने संसार में तुझे।
मुक्त चौरासी से हो भजकर मुझे।
भूलकर पाठ प्रभु का गया है जो सो।
यह अनमोल जीवन अपना,
वृथा ही दिया उसने खो।
मानव तन पा करके,
भजा न प्रभु को जो।
रचयिता – श्रीमती सुमा मण्डल
वार्ड क्रमांक 14 पी व्ही 116
नगर पंचायत पखांजूर
जिला कांकेर छत्तीसगढ़