
बेकाबू मन
( Bekaaboo mann )
बेकाबू मन मेरा बार बार, स्मरण तुम्हारा करता है।
तर जाता जनम मरण मेरा यदि,ईश्वर मे ये रमता है।
तुम मोह मेरे हरि मोक्ष रहे,मन जान नही ये पाता मेर।
मन के संग प्रीत का मंथन है, हुंकार हृदय घबराता है।
आशा में तनिक निराशा है, दोनो में द्वंद मचा ऐसे।
हुंकार हृदय में तृष्णा है,फिर क्यों हरि पास बुलाता है।
चैतन्य नही मन भंवर बना,लय ताल बिगडता जाता है।
प्रभु साथ तो दो या मार ही दो,संसय बढता ही जाता है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )