कैनवस के पास | Kavita Canvas ke Paas

कैनवस के पास

( Canvas ke Paas )

कैनवस पर तस्वीर बनाते समय
‘कैनवस के पास’ सिर्फ़ रंग
और ब्रश ही नहीं बिखरे होते
और भी बहुत कुछ होता है-
तुम्हारी यादें ,
टूटे सपनों के टुकड़े,
गुज़री मुहब्बत
पानी की बोतल, नज़दीक का चश्मा,
पीले पत्ते… धूप, कुर्सी,
घास, बड़ी छतरी , कैप, पैन, मोबाइल…

कल्पनाओं के दायरे में
होते हैं बहुत चेहरे, बहुत मंज़र…
बहुत नज़ारे…
मगर
जो उभर आये उस समय
अतीत की धुंध चीर कर
मन के पटल पर
वही बन जाता
कैनवस पर
हम बाद में सिर्फ़ रंग भरते रह जाते
हैं…
कई बार तो कुछ चित्र अधूरे भी रह जाते हैं
अधूरी मुहब्बत की तरह।

Dr Jaspreet Kaur Falak

 

हिंदी अनुवाद : डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
( लुधियाना )

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मूल पंजाबी कविता- अमरजीत कौंके | अनुवादक- डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

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