दादी माँ की मन्नत
( Dadi maa ki mannat )
माॅंगी जो हमनें मन्नत एक,
रखना ईश्वर हम सबको एक।
यह बैर किसी से हो नही पाएं,
प्रेम-भाव से रहे हम सब सारे।।
जैसे गुज़रें है अब तक दिन,
आगे भी गुज़रें ऐसे ही दिन।
सब कुछ दिया है आपने ईश्वर,
आगे भी कृपा रखना परमेश्वर।।
एक अर्जी लगाती हूं मैं मेरी,
पोता हाथ खिलाएं हम हमारी।
०३ मंजिल से आवाज़ हम लगाएं,
सोने के चम्मच से दूध पिलाएं।।
एक यही है मन्नत अब मेरी,
फिर दिखाना जन्नत मुझे तेरी।
भोग लड़वन का लगाऊंगी तेरे,
पोते का मुॅंह दिखादो मुझे मेरे।।
उम्र बीत गई चरणों में तुम्हारे,
सेवा और पूजा पाठ करते सारे।
कुछ अच्छे कर्म किये होगें मेंने,
उसी के फल आज मुझको देदे।।
सबकी मन्नत करता है तू पूरी,
ईश्वर अल्लाह तू ही मेरा साईं।
ऐसा चमत्कार कर दो मेरे साईं,
पोता बुलाएं मुझको दादी माई।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )