धरती की पुकार | Kavita dharti ki pukar
धरती की पुकार
( Dharti ki pukar )
जब धरती पे काल पड़ जाए हिमपात भूकंप आए
वृक्ष विहीन धरा पे बारिश कहीं नजर ना आए
ज़र्रा ज़र्रा करें चित्कार सुनो सुनो धरती की पुकार
सागर व्योम तारे सुन लो सारे जग के सुनो करतार
अनाचार अत्याचार पापाचार का बढ़े पारावार
संस्कार विहीन धरा पे मच जाता जब हाहाकार
तपन से व्याकुल पंछी पानी बिन बेहाल हो जाए
गर्म तवे सी जले धरती गर्मी से परेशान हो जाये
गूंज उठी फिर फिजाएं सुनो सुनो धरती की पुकार
पेड़ लगाये हम सारे मिलकर दुनिया में आए बहार
हरियाली भरी वादियों से धरती करें जब श्रंगार
कुदरत भी महक उठती बहती मदमस्त बयार
काले काले मेघ मुसलाधार बरसकर जब आते
रिमझिम रिमझिम बरसते नजारे मन को भातें
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )