अवशेषी पुस्तिका

( Avsheshi Pustika )

 

ना सारांश ना ही उद्धरण;
ना प्रतिमान ना ही प्रतिच्छाया
छोटी सी स्मृति भरी
अशुद्ध संवेदी अवधारणा हूँ…

अप्रचलित परिच्छेदों;
त्रुटियों से पूर्ण
परित्यक्ता कही जाने वाली
अधुरी सी गूढ़ कहानी हूँ…

मेरे घटिया शब्दों के प्रत्युत्तर में
तुम्हारी सभ्य खामोशी के अर्थ
ढूँढने की कोशिश करती
सस्ती एक प्रेम-पुस्तिका हूँ…

अपने रक्त में कलम डुबोकर
बिन्दुकित अधुरे वाक्यों के बीच
खाली स्थान भरने वाली
पीड़ा की लाल स्याही हूँ…

लिप्त रहती हूँ संघर्षरत
तुम्हारे टेढे-मेढ़े अक्षरों के बीच
स्नेह के संकेत पाने खातिर
थोड़ी अंधी अन्वेषक हूँ…

अपराधिन मैं अपनी व्यथा को
कैनवास पर बिखेर कर
बदरंग चित्रांकित हुई
शर्मसार नापाक एक तस्वीर हूँ…

उत्कृष्ट साहित्य में शुमार होने की
जद्दोजहद करती
कभी प्रचलित भावुक कथा थी
अब अवशेषी घटिया शब्दकोष हूँ..

 

डाॅ. शालिनी यादव

( प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री )

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