गुरु कुम्हार | Kavita
गुरु कुम्हार
( Guru kumhar )
गुरु कुम्हार शिष् कुंभ है गढ़ी गढ़ी कांठै खोट।
अंतर हाथ सहार दे बाहर बाहे चोट।
हर लेते हो दुख सारे खुशियों के फसल उगाते हो।
अ से अनपढ़ ज्ञ से ज्ञानी बनाते हो।
चांद पर पैर रखने की शिक्षा भली-भांति दे जाते हो।
नेता, अभिनेता, डॉक्टर, इंजीनियर, बनाने में सर्वत्र जीवन लुटा देते हो।
ईश्वर से कम नहीं, ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बता जाते हो।
अज्ञानता का तम हटाकर दिव्य ज्ञान की ज्योत जलाते हो।
मेहनत के हर रंग से परिचित हमें कराते हो।
समझाकर कठिन अनुशासन, अनुशासित हमें बनाते हो।
देखकर विद्या का धन जीवन सुखी बनाते हो।
शब्दों का ज्ञान व अर्थों की गहराई समझाते हो।
अज्ञानता का तम हटाकर दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाते हो।
कभी कुम्हार बनकर हर बच्चों की किस्मत चमकाते हो ।
हर ऋतु में हर ऋतुओं का पाठ पढ़ाते हो।
धरती आसमान चांद सूरज से परिचय हमारा करवाते हो।
पग पग हर पथ पर हौसला हमारा बढ़ाते हो।
असली धन विद्या है बारंबार सिखाते हो।
देकर विद्या का धन जीवन सुखी बनाते हो।
दया दान आशीष की परिभाषा से परिभाषित कराते हो ।
अज्ञानता का तम हटाकर दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाते हो।
सीमा पर हर एक सिपाही तैयार तुम कराते हो।
अज्ञानता का तम हटाकर दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाते हो।
लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड
(मेरे जीवन की सभी अध्यापक व अध्यापिकाओं ओं को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।)