रिश्तों का सच
रिश्तों का सच

रिश्तों का सच

( Rishton ka sach )

 

स्वार्थ से परिपूर्ण रिश्ते,इस जहां में हो गए है,
पुष्प थे जो नेह के वो, शूल विष के बो गए है।

 

प्रेम से अपनी कहानी, जो सुनाते हैं हमें,
हमने जब अपनी कही तो, कोह हमसे हो गए है।

 

फूल मेरे बाग से चुन,आशियां खुद का सजाते,
आंधी से उजड़ा चमन तो,दोष हमको दे गए है।

 

वक्त पर अवलंब बनके ,हम सदा जिनके रहे,
जब हमारा वक्त आया,वो बेगाने हो गए है।

 

खुद के बच्चों का निवाला,छीनकर जिनको दिया,
वो स्वयं बनके खुदा,तकदीर मेरी लिख गए है।

 

चुनके के कांटे राह के,जिनको दिखाया रास्ता,
आज मेरी जिंदगी में,वो ही कांटे बो गए है।

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रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर

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