हे भोले हे भंडारी
( He bhole he bhandari )
हे भोले
हे भंडारी
वो दुनिया थी
और
अब
आ गया कलयुग
घोर
ज़हर जो तूने
समा लिया था
कंठ में
वो अब फैल गया है
सब ओर
अब क्या
सोच रहा है
कुछ नहीं क्यों
बोल रहा है
क्या मिट्टी के
शिवलिंग से
सोने, चांदी,
पारद के
‘लिंग में
जाकर हो गया
तू भी
महंगा औ’
अनमोल
वर्ना
देख
बदली हुई इस
दुनिया को
जहाँ पाप हो रहा है
भारी और
पुण्य पर
कर रहा
हल्ला बोल
कैलाश में
क्यों छुप
गये हो ?
या
मंदिर, मठों तक
ही रह गये हो
बंद हो गये है?
हे भोले
हे भंडारी
बाहर निकल
और अपना
तीसरा नेत्र तो
खोल
कभी
कुछ तो
बोल
#HappyShivratri
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )
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