हे, मनुज अब तो कुछ बोल | Kavita Hey Manuj
हे, मनुज अब तो कुछ बोल
( Hey manuj ab Kuch to bol )
मसल रहे है, कुचल रहे है,
पंख कलियों के जल रहे है,
उजड़ रहा है यह हरा भरा,
चमन अमन का डरा डरा,
मदारी इशारो पे नचा रहा,
यहां कागा शोर मचा रहा,
कब तक नंगा नाच चलेगा,
कब तक श्वेत झूठ पलेगा,
बुझे बुझे से हो गए कपोल,
हे, मनुज अब तो कुछ बोल !!
!
सच पर झूठ का पहरा है,
काल का प्रकोप गहरा है,
मन विवश करने को संताप,
सिमट रहा रवि का प्रताप,
हंस कानन बिच रोता है,
धैर्य अब साहस खोता है,
वक्त का चाक रुकने लगा,
नभ का शीश झुकने लगा,
अब तो लब के बंधन खोल,
हे, मनुज अब तो कुछ बोल !!
!
सिमट रही है दुनियादारी,
चेहरे झलक रही लाचारी,
दानव बल नित बढ़ता जाता,
पवन वेग से चढ़ता जाता,
मृदु भावों को स्थान नहीं है,
चलती काया में प्राण नहीं है,
नरपति हो गए दुराचारी,
ये कैसी हो गई लाचारी,
ह्रदय को अब तो तू टटोल,
हे, मनुज अब तो कुछ बोल !!
!
डी के निवातिया